पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८८६

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८६७ gana+HapprnuprkH4 Amardeep+MANORN.AMRO-ANIMinu++++ भक्तिसुधास्वाद तिलक । (पद) “नयन लगि जायें जो राजिव नैन । भटकत हैं दरसन अभिलाषे, खटकत हैं दिन-रेन ॥” दो० "पुतरी कारी आँख की, रूप श्याम को मान । वासों सब जग देखिये, वा विन अन्धो मान ॥ १॥" श्रीप्रेमनिधि के सोच विचार तथा अपार प्रेम किस से वर्णन हो सकते हैं? दो० "जब लगि भक्ति सकामता, तब लगि कच्ची सेव । कह कबीर वे क्यों मिलें, निहकामी निज देव ॥" (कवीरसाहब) (७६३) टीका । कवित्त । (८०) कथा ऐसी कहै जामैं गहै मन भाव भरे, करें कृपादृष्टि दुष्टजन दुख पायौ है । जायक सिखायो बादशाह उरदाह भयो, कही तिया भलीको समूह घर छायो है ।। आए चोरदार कहै चलौ एही बारबार, झारी प्रभु आगे धखो चाहै सोर लायो है। चले तब संग गए पूछे नृपरंग कहा १ तियनि प्रसंग करो ? कहिकै सुनायो है ॥५६७॥ (३३) वात्तिक तिचका । श्रीप्रेमनिधिजी श्रीभागवत की कथा इस प्रकार कहते थे कि जिसको मन एकाग्र हो ग्रहण कर प्रेमभाव से भर जाता था। स्वयं पाठक समझ सकते हैं कि श्रीप्रेमनिधिजी की कथन कैसी विलक्षण तथा प्रभावयुक्त होती होगी। उनकी कथा में पुरुषों और त्रियों की बहुत भीड़ होती थी। जीवों पर आपकी ऐसी कृपादृष्टि देख दुष्टों ने स्वभावतः दुख पाकर जाके नृपति (बादशाह) से झूठी निन्दा की कि "उसके घर में नगर भर के अच्छे अच्छे घरों की सब त्रियाँ पाके बैठी रहती हैं।" कवित्त। "आजु कलिकाल ऐसो भायौ है कराल अति, राखें भगवान टेक, तो तो वृन्द लीजिये । बोलिये न चालिये जु, बैठि, पिंड पालिये जु, ऑखि कान दोउ नूदि, मौनव्रत लीजिथे ॥ देखी अनदेखी जानि, सुनी अनसुनी मानि, माला गहि पानि, हानि लाभ चित दीजिये।