पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८८७

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८६८ श्रीभक्तमाल सटीक । कीजिये न रोष जो पै कहै कोऊ बीस सीस, लीजै धरि सीस, जगदीस साखि कीजिये ॥१॥" ___ यवनराज ने सुनते ही क्रोधाग्नि से जलके लोगों को भेजा कि “उसको बुला लायो" आकर उन्होंने कहा कि “इसी क्षण चलो।" उस समय चाप जलसे भारी भरके प्रभु के पीने को आगे रखना चाहते थे, पर उन लोगों का कठोर हाँक सुन उनके साथ चल ही दिये ॥ गये, यवनराज पूछने लगा “तुम्हारा क्या रंग है ? हम सुनते हैं कि नगरभर की अच्छी अच्छी नारियों का प्रसंग रखते हो" उसका कहना सुन मापने उत्तर दिया। (७६४) टीका । कवित्त । (७९) "कान्ह भगवान ही की बात सो बखानि कहाँ, धानि बैठें नारीन लागी कथा प्यारी है। काहू को बिडारे, झिरकार, नैकु टोर, विषा कै निहार, ताको लागै दोष भारी है"। "कही तुम भली तेरी गली है के लोग मोसों आयकै जताई वह रीति कछु न्यारी है" । बोल्यो “या राखौ सब करौ निरधार नीके," चले चोबदार लेक, रोके प्रभु धारी है ॥५६॥ (३२) वात्तिक तिलक । ___ "खोटी कहनेवालों का मुँह कौन रोके, परन्तु मैं तो श्रीकृष्ण भगवान की ही कथा बखान करता हूँ, सुनने के लिये नारी पुरुष सब श्राकर बैठते हैं क्योंकि सबको प्यारी लगती है, उसमें कोई किसी को अपमान करके उठा दे, या विषयदृष्टि से देखे, तो उसको बड़ा भारी दोष होता है, इससे मैं किसी को निषेध नहीं करता।" यवनराज ने कहा कि “तुमने तो अच्छी बात कही, परंतु तुम्हारे समीप ही के लोगों ने आकर हमसे जताया है कि उसकी रीति कुछ और ही प्रकार की है। ऐसा कह, सेवकों को श्राज्ञा दी कि "ले जाओ, इसको नजरबन्द (बन्धन पहरे में) रक्खो, इसका निर्णय हो जायगा, तब छोड़ेंगे।” आज्ञा सुन चोबदारों ने ले जाकर बन्धन में डाल रखा ॥ श्रीप्रेमनिधिजी प्रभु से प्रार्थना करने लगे।