पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८८८

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५६९ भक्तिसुधास्वाद तिलक । प्रभु ने कृपाकर विनय को श्रवण में धारण किया। (७६५) टीका । कवित्त । (७८) सोयो बादसाह निसि, आयकै सुपन दियौ, कियौ वाको इष्टभेव, कही "प्यास लागी है"। "पीवौ जल,” कही “प्रावखाने लै बखाने" तब अति ही रिसाने "को पियावे, कोऊ रागी है!" | फेर मारीलात अरे सुनी नहीं बात मेरी, श्राप फरमावी * जोई प्यावे बड़भागी है। सोतो ते ले कैद कसौ सुनि अस्वखो डखौ भखौ हिये भाव मति सोवत तें जागी है ॥ ५६६ ॥ (३१) वात्तिक तिलक । जब रात को यवनराज सोया, तब प्रभु ने यवनों के इष्टदेव मुहम्मद- साहिब का रूप वेष बनाकर स्वप्न में उसको आज्ञा की कि “हमको प्यास लगी है,” सुनके भूपाल ने सादर कहा कि “जल पीजिये ।" आपने पूछा कि “पानी कहाँ है ?" उसने बताया "श्रावखाने में है।" तब आपने रिस में आकर कहा कि "वहाँ कोई प्रेमी सेवक तो है ही नहीं. पिलावै कौन?" वह कुछ न वोला । तब आपने उसको एक लात मारकर पूछा कि “अरे, तूने हमारी बात सुनी अनसुनी कर दी ?" तब घबड़ाके कहने लगा कि "जिस बड़भागी को श्राप आज्ञा दीजिये सो पिलावै।" आपने आज्ञा की कि "उस पिलानेवाले प्रेमी को तो तुने पकड़कर कैद किया है।" ऐसा सुन बादशाह बहुत घबड़ाया, डरा, और उसके हृदय में भक्ति- भाव उत्पन्न हुआ। उसकी सोती हुई बुद्धि जाग उठी और स्वयं उसकी नींद भी टूट गई ॥ चौपाई। ___ "अब समझयो कछु सो नर नाहू । टेढ़ देखि शंका सबकाह॥" दो० “सन्तननिन्दा अति बुरी, भूलि सुनो जनि कोइ । किये सुने सव जन्म के, सुकृतहु डार खोइ ॥१॥"

  • "फुरमावो"=ilayाज्ञा कीजिये ।