पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९०

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७१ Hanimumbai- Hairtamodamas +HMAMMAau भक्तिसुधास्वाद तिलक । फाँसी लिये हुए देख पड़े। तव अतिशय मोह तथा महाभय से उस सुत का कि जिसको सन्तों ने कृपा करके दिया था और नाम भी रख दिया था बड़े भात और उच्च स्वर से “नारायण!!!" ऐसा पुकारा।। ___ भक्तरक्षार्थ जो भगवत्पार्षद जगत् में विचरते रहते हैं वे नारायण शब्द आर्तनाद से सुनते ही उसी ठिकाने दौड़ के आ ही तो पहुँचे। और उस बेचारे की फाँसी को तोड़ के उसको छुड़ा ही लिया । यमदूतों ने पापी की सहायता का कारण पूछा तब पार्षदों ने विवशतु भगवन्नामोच्चारण का माहात्म्य कहिके उनको हराया ही नहीं बरंच भगा भी दिया उनने जाके अपने पति यमराज से पुकार किया। यमराज ने सब व्यवस्था सुनके उन दूतों को डाट बतायी कि "अरे ! तुम सबों पर वज्र पड़े, मेरी बात समझके चित्त में हद गहि रक्खो कि कोई कहीं कैसाह पापी क्यों न हो परंतु वह यदि किसी प्रकार से भगवन्नामोच्चारण करे तहाँ तुम भूल के भी कदापि मत जाव वहाँ तो तुम्हारा वा मेरा भी कोई प्रयोजन ही नहीं । उनको तो भगवद्भक्त ही जानना ॥"प्रियपाठक । नाम का माहात्म्य तनक चित्त लगाके देखिये ।। चौपाई।। विवशतु जासु नाम नर कहहीं। जन्म अनेक सँचित अघ दहहीं। सादर सुमिरन जे नर करहीं । ते गोपद इव भवनिधि तरहीं।। (३२) छप्पय (८११) मोचित दृति नित तहँ रहौ जहँ नारायण (पद)* पारषद ॥ विषवकसेन, जय, विजय, प्रबल, बल, मङ्गल- कारी। नन्द, सुनन्द, सुभद्र, भद्र, जग आमयहारी॥ चण्ड, प्रचण्ड, विनीत, कुमुद, कुमुदाक्ष, करुणालय। शील,मुशील, सुषेन भावभक्तन, प्रतिपालय॥ लक्ष्मी- पति प्रीणन प्रवीन भजनानन्द, भक्तन सुहृद । मो चित वृति नित 'तहँ रही जहँ "नारायण (पद) पार- षद"॥८॥(२०६) --

  • (पद) शब्द पीछे से मिलाया हुआ है । मूल "नारायण पारषद" ही मात्र है ॥