पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८९१

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4-9- 1 4 44444. 0 + m- M4MHunt 14 HRA ८७२... ८७२ श्रीभक्तमाल सटीक। अर्थात् जैसे मार्ग चलनेवालों को टिकने की चौकियाँ होती हैं. ऐसे ही श्रीभगवद्दासों के रहने के अर्थ इन संतसेवियों के पुनीत गृह सुशो- भित हुये ॥ (१२) वेरछेग्राम में श्रीहरिनाराययंजी, और राजा पैदुमजी विराजमान हुए। (३।४) हुसंगावाद नगर में श्रीअटलजी और ऊधोजी बहुत अच्छे शोभित हुए। (५/६) पास ही में मिले हुये श्रीतुलसीदासँजी तथा देवकल्यान जी संतसेवा में विख्यात सुभट थे। (७) सुहेले में भवसागर की नौका सरीखे वीरारामदासजी परम सुजान थे। और-- () "श्रौली" में श्रीपरमानन्दजी के द्वार पर भागवतधर्म की दृढ़ ध्वजा गड़ी थी॥ (७६९) छप्पय । (७४) अबला सरीर साधन सबल, ए बाई हरिभक्ति बल ॥ देमां, प्रगट सब दुनी, रामाबाई, बीरी, हीरामनि । लाली नीरा, लक्षि,जुगल पर्विती, जगत धनि । खीचनि, केसी धनी, गोमती, भक्त उपासिनि । बादरोंनी, विदित गंगा, जमुनों, रैदासिनि ॥ जेवों, हरिषीं, जोइसिनि, कुँवरिरीय, कीरति अमल। अबला सरीर साधन सबल, ए बाई हरि- भक्ति बल ॥१७०॥ (४४) वात्तिक तिलक । इन वाइयों के शरीर तो अबला त्रियों के थे, परन्तु सबल साधन करके ये श्रीहरिभक्ति में बड़ी बलवान हुई ॥ (१) सब जगत् में प्रगट श्रीदेमा-(२) श्रीरामावाईजी (३) श्रीवीरांबाईजी बाईजी