पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/८९२

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८७३ Imagemi-RIANDINAMANANE duranam++++4Hardwar ds भक्तिसुधास्वाद तिलक । (४) श्रीहीरामनिजी | (१४)जगत् विख्यात श्रीवाद- (५) श्रीलालीजी रानीजी (६) श्रीनीरांजी (१५) श्रीगंगावाईजी (७) श्रीलक्ष्मीवाईजी (१६) श्रीयमुनाबाईजी (८९ ) दोनों “पार्वती (१७) श्री रैदासिनिजी जगत् में धन्य हुई (१८) श्रीजेवावाईजी (१०)श्रीखीचनिजी (१६) श्रीहरिषाँबाईजी (११) श्रीकेशीजी (२०) श्रीजोइसिनिजी (१२) श्रीधनाबाईजी (२१) निर्मलकीर्तियुक्त श्रीकुंवार- (१३) श्रीगोमतीजी,श्रीहरिभक्तों रायजी की उपासना करनेवाली । (२०२) श्रीकान्हरदासजी। (७७०) छप्पय । (७३) "कान्हरदास" संतनिकृपा, हरि हिरदै लाहौ लह्यौ ॥ श्रीगुरु शरणै आय भक्ति मारग सत जान्यौ । संसारी धर्महि छाँडि झूठ अरु सांच पिठान्यौ ॥ ज्यौं साखा द्रुम चंद जगतसों इहिं विधिन्यारौ । सर्वभूत सम दृष्टिं गुननि गम्भीर अति भारौ ॥ भक्त भलाई बदन नित, कुबचन कबहुँ नाहिन कह्यौ । “कान्हरदास” संतनि कृपा, हरि हिरदै लाहौ लह्यौ ॥१७१॥ (४३) वात्तिक तिलक। श्रीकान्हरदासजी ने संतों की कृपा से अपने हृदय में परम लाभ श्रीहरिस्वरूप को पाया । श्रीगुरु शरण में आकर सुन्दर भाक्ति के मार्ग को यथार्थ जाना, संसारियों के धर्म कमाँ को छोड़. जगत को झूठा तथा आत्मस्वरूप को सत्य पहिचाना । जैसे लोग बतलाते हैं कि "अमुक वृक्ष की शाखा पर वह चन्द्रमा दिखाता है" पर चन्द्रमा १ "पिछान्यो"=पहिचाना