पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९०४

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+ + ION -- - भक्तिसुधास्वाद तिलक ! ८८५ कोई नहीं जानता, इससे मैं प्रकाश करता हूँ । एक शक्तिरूपिणी नाचने वाली नदी रूप गुणयुक्त बड़ी चटकीली तान गाके मंद मंद हँसी से मोह उत्पन्न करती थी। राजा जगदेवरिझवार, देखके, देने को विचार करता परन्तु उसके योग्य कोई द्रव्य नहीं पाया तब नटी से कहा कि "मैंने अपना सीस तुझको दिया, काटले ।" नटी ने उत्तर दिया कि "सीस अब मेरा है, अभी मैं आपके ही पास रखती हूँ॥" - (७८४) टीका । कवित्त । (५९) दियो कर दाहिनो मैं, यासों नहीं जाचौं कहूं, सुनि एक राजा भेदभाव सों बुलाई है। निर्तकरि गाई रीझि “लेवो कही,"आई “देड" श्रोड्यो बायों हाथ, रिस भरिकै सुनाई है। "इतो अपमान,” "पानि दक्षिन लै दियो अहो नृप जगदेवजू कों,” “ऐसी कहा पाई है ?"। "तासों दसगुणी लीजै, मोको सो दिखाय दीजै, "दई नहीं जाय काहू, मोहिये सुहाई है"॥ ६०६ ।। (२४) ___ वात्तिक तिलक । जव जगदेव ने मस्तक दे दिया तव नटी ने कहा कि "मैंने अपना दाहिना हाथ आपको दिया, अब इस हाथ से किसी से न मागूंगी और न लूंगी। ___ यह सुनकर उस नटी को एक राजा भेदभाव से बुलाकर नाच करा और रीझ के कुछ देने लगा। उसने वायां हाथ बढ़ाया। राजा रिसा के कहने लगा कि "बायाँ हाथ पसार तुम हमारा अपमान करती हो?" उसने उत्तर दिया कि “मैं अपना दाहिना हाथ राजा जगदेवजी को दे चुकी हूँ, उसके समान वस्तु दूसरा कौन दे सकता है ?" राजा कहने लगा कि "उसने क्या दिया, मुझे दिखादो, मैं उससे दशगुणी वस्तु दूंगा।" नटी बोली कि "उसने मुझे बहुत प्यारी वस्तु दी है सर्वस्व दिया है, वैसा कोई भी नहीं दे सकता ॥" एक महात्मा ने लिखा है कि वह नटी श्रीकाली का अंश अवतार थी॥ (७८५) टीका । कवित्त । (५८) कितौ समझावै “ल्याचौं” कहै, यहै जक लागी, गई बड़भागी