पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९०५

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MMM . ..M - . - - - ८५६ श्रीभक्तमाल सटीक पास “वस्तु मेरी दीजियै” । काटि दियो सीस, तन रहे ईश शक्ति लखो, ल्याई बकसीस थार ढापि, देखि लीजियै ॥ खोलि के दिखायो नृप मुरछा गिरायो तन, धन की न बात अब याको कहा कीजिये । मैं जु दीनो हाथ जानि पानि श्रीव जोरि दई बई वही रीमि पद तान सुनि लीजिये ॥ ६०७॥ (२३) वात्तिक तिलक। नटी ने बहुत समझाया, पर उस राजा ने बड़ी हठ से कहा कि “वह वस्तु लेही श्रावो॥" नटी ने जगदेव के पास जाके कहा कि “मेरी वस्तु मुझे दीजिये।" राजा ने अपना सीस काट दिया। नटी ने शरीर को बड़े यत्न से रखवा सीस को थाल में धरके दॉक के इस राजा के पास लाकर दिखाके कहा कि “श्रीजगदेवजी की दी हुई वस्तु देखो।" देखते राजा मूञ्छित हो गिर पड़ा. कहने लगा कि "धन तो है नहीं यह तो मस्तक है, यह मैं कैसे दे सकता हूँ?" नटी ने कहा कि “ऐसी वस्तु पाकर तब अपना दाहिना हाथ दे दिया है।" फिर उस नटी की शक्ति देखिये कि माथा लाकर जगदेवजी के गले में जोड़कर वही पद तान गाने लगी, सीस जुड़ गया, वह जी उठा। (७८६) टीका ! कवित्त । (५७) सुनी जगदेव रीति, प्रीति नृपराज सुता पिता सों बखानि कही वाही को ले दीजियै ॥ तब तो बुलाये समझाये बहु भाँति खोलि वचन सुनाये, “अजू बेटी मेरी लीजिये। नट्यो सतबार जब कही "डारौ मारि," चले मारिव कों, बोली वह "मारौ मत भीजिये” । दृष्टि सोन देखें कही “ल्यावौ काटि मुंड," लाए, चाहै सीस आँखिन को, गयो फिरि, रीमियै ॥ ६०८॥ (२२) वात्तिक तिलक । रूप और गान पर कौन नहीं रीझता ? जगदेवजी का यह सब वृत्तांत एक बड़े राजा की बेटी ने सुन उस पर प्रीति से आसक्त होकर, १"बकसीस"stani पारितोषिक ॥