पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९०९

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श्रीभक्तमाल सटीक (२११) श्रीकृष्णदासजी। (७९०) छप्पय । (५३) नन्दकुँवर “कृष्णदास” कों, निज पग तें नूपुर दियौ ॥तान मान सुर ताल सुलय सुंदरि सुठि सोहै। सुधा अंग भूभंग गान उपमाको को है । रत्नाकरसंगीत, रागमाला, रंगरासी । रिझये राधालाल, भक्तपद- रेनु उपासी ॥ स्वर्णकार "खरगू" सुवन, भक्तभजन- पद दृढ़ लियौ । नन्दकुँवर "कृष्णदास” को, निज पगते नूपुर दियौ ॥ १८०॥ (३४) वात्तिक तिलक। श्रीकृष्णदासजी को नृत्य करते समय में श्रीनन्दकुमारजी ने अपने चरणों से नूपुर (घुघुरू) निकालके पहना दिया । श्राप नृत्यभेद और गान में बड़े प्रवीण थे। पद तान का प्रमान स्वर ताल अच्छी लय ये सब आपके गान नृत्य में अंग सुन्दर शोभते थे। सुधा भ्र भंग आदिक व्यंजक अभिनय और गान अनुपम था। संगीतरत्नाकर और रागमाला, रंगरासि आदि में जो गान नृत्य के भेद लिखे हैं सो सब आप जानते थे। इन गुणों से श्रीराधालालजी को प्रसन्न कर लिया। श्रीहरिभक्तों के चरणरेणु के उपासक स्वर्णकार (सोनार) “श्रीखड़गू- जी" के पुत्र (कृष्णदासजी) ने भगवद्भक्तों के भजन का पद दृढ़कर ग्रहण किया। जिनको गाना भले प्रकार आता है, जिनका स्वर अति मधुर है; जिनको प्रेम के पद बहुत कण्ठस्थ हैं वा स्वयं रच सकते हैं, और गाने के समय जो रस का अनुभव करते हैं, उन बड़भागियों की प्रशंसा किससे हो सकती है। (७९१) टीका । कवित्त । (५२) कृष्णदास ये सुनार राधाकृष्ण सुखसार लियौ सेवाकरि पाचे