पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९१०

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prdenlo n enternama भक्तिसुधास्वाद तिबक। ८९१ नृत्य विसतारियै । द्वै करि मगन काहू दिन तन सुधि भूली, एक पग नूपुर सो गिलौ न सँभारियै ।। लाल अति रंग भरे जानी जति भंग भई पाय निज खोलि आय बाँध्यौ सुख भारियै । फेरि सुधि आई देखि धारा ले बहाई नैन कीरति यों छाई जग भक्ति लागी प्यारियै ॥६१२॥ (१८) वात्तिक तिलक । श्रीकृष्णदासजी सोनार ने श्रीराधाकृष्णजी की भक्ति का सुखसार लिया । पहिले सप्रेम सेवा-पूजा करते, पीछे प्रभु के धागे नृत्य विस्तार करते थे। एक दिन नाचते समय भानन्द में मग्न हो शरीर की सुधि भूल गए। एक चरण का नूपुर गिर गया। उसको आपने सुधारा नहीं। श्रीनन्दलालजी ने नृत्य देख रंग में भरे जाना कि नृत्य की जति गति भंग हुत्रा चाइती है, इससे अपने चरण का नूपुर खोल कृष्णदास के पग में बाँध अति सुख पाया। फिर पीछे जब देह की सुधि हुई तब देखें तो अपना नूपुर भूमि में पड़ा है और प्रभु का नूपुर अपने पग में । प्रभु की कृपालुता को समझ नेत्रों से प्रेमजल की धारा वहने लगी। इसी प्रकार आपकी कीर्ति जग में छा गई, और भक्ति सबको प्रिय लगी॥ (७९२) छप्पय । (५१) परमधर्म प्रति पोषकौं, संन्यासी ए मुकुटमनि ॥ चितसुखंटीकाकार भक्ति सर्वोपरिराखी । श्रीदामोदर तीर्थ राम अर्चन विधि भाखी ॥ चन्द्रोदय हरिभक्ति नरसिंहारन कीनी । माधौ, मधुसूदन सरस्वती, परम- हेस कीरति लीनी ॥ प्रबोधानंद, रामभद्रं जगदानंद,