पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९१२

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। वात्तिक तिलक श्रीप्रबोधानन्दजी बड़े ही रसिक, आनन्दकन्द श्रीकृष्णचैतन्यजी के प्रिय पार्षद थे। श्रीराधाकृष्णकुंजलि अति नवीन वर्णन किया और रूपरस को पान कर युगलचन्द को अपने नेत्रों के तारे कर लिये। । आपने अपने काव्य में श्रीवृन्दावनवास के उल्लास का प्रकाश कर उपासकों को सुखसिंधु में मग्न किया और कर्मधर्म को न्यारे करदिया। उस ग्रंथ को सुन २ के करोड़ों लोगों ने प्रेमरंग को पाया। आपने स्वयम् सुन्दर श्रीवृन्दावन में बसके तन मन धन सबन्यवछावर करदिये। (२१३) श्रीद्वारकादासजी। (७९४ ) छप्पय । (४९) अष्टांग जोग तन त्यागियौ, "द्वारिकादास” जानै दुनी।सरिता "कूकस" गाँवसलिल में ध्यान धसौमन। रामचरण अनुराग सुदृढ़ जाके साँचौ पन ॥ मुत कलन धन धाम ताहि सों सदा उदासी।कठिन मोह को फन्द तरकि तोरी कुल फाँसी ॥ "कोल्ह" कृपा बल भजन के ज्ञान खड़ग माया हनी । अष्टाङ्ग जोग तन त्यागियो, “हारिकादास" जानै दुनी॥१८२॥ (३२) दार्तिक तिलक । श्रीदारिकादासजी, क्रम से यम, नियम, भासन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, इन सातों अंगों को साधके, आठवें अंग समाधि में स्थित होकर, ब्रह्मरंध्र फोड़, तन त्यागके, श्रीरामधाम को प्राप्त हुये, यह सब संसार जानता है। कूकस ग्राम के निकट, नदी के जल में स्थित हो, मन में ध्यान घरा । आपके प्रेमभक्ति का प्रण सच्चा था इससे श्रीरामचन्द्रचरणों १ "दुनी"-15-दुनिया, संसार ॥