पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९१३

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८९४ श्रीभक्तमाल सटीक । में अतिशय दृढ़ अनुराग कर, स्त्री पुत्र धन धाम आदिकों से सदा उदासीन हो, कठिन मोहजाल की सब फाँसियाँ तोड़ दी। अपने गुरु स्वामी श्रीकील्हदेवजी की कृपादत्त भजन के बल से, बानखड्ग ले, अविद्या माया को नाश कर, अष्टांग योग से तन त्याग, श्रीराम- धाम में जा बसे॥ (२१४) श्रीपूर्णजी। (७९५) छप्पय । (४८) पूरन प्रगट महिमा अनंत, करिहै कौन बखान॥ उदै अस्त परबत गहिर मधि * सरिता भारी । जोग जुगति बिस्वास, तहां दृढ़ आसन धारी ॥ व्याघ्र सिंघ गुंजै खरा कछु संक न माने। अईन जातें पौन उलटि ऊरध को आनै ॥ साखि शब्द निर्मल कहा, कथिया पद निर्बान । पुरन प्रगट महिमा अनंत, करिहै कौन बखान ॥१८३॥ (३१) वात्तिक तिलक । श्रीपूर्णदासजी की अंनत महिमा प्रगट हुई उसको कौन बखान सकेगा। उदयाचल और अस्ताचल के मध्य में जितनी नदियाँ हैं उन सबों में अति गहिरी सरिता श्रीगंगाजी के निकट, हिमाचल में श्राप योगयुक्ति से भगवत् के विश्वासपूर्वक' दृढ़ भासन धारण कर ध्यान समाधि लगा, समीप में व्याघ्र सिंह खड़े हुये गर्जते थे, अपने अपान वायु को प्राण में मिलाकर उर्ध्व ही को ले जाते, नीचे नहीं जाने पाता। आपने साखी, शब्द, निर्मल कहकर निर्वान पद मोक्ष का उपाय वर्णन किया। निश्चय होता है कि ये पूर्णजी वही हैं कि जिन “पूर्ण विराटीजी" का द्वारा है।

  • अर्थात् श्रीगगाजी॥