पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९२०

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m ne- donorartment -p- Ra trutrrantee PARAM - भक्तिसुधास्वाद तिलक। ....९०१ . “हम आपके जितने गुण (यश) जानते थे उतने सुन्दर मति लगा के गान किये ॥ __दो गदाधरजी श्रीकृष्ण चैतन्यमहाप्रभु के चौंसठ महन्तों में थे। एक 'गदाधरदास श्री ६ कृष्णदास पयहारीजी के शिष्य थे । एक गदाधरजी बाँदावाले, और एक गदाधरजी श्रीवल्लभाचार्यजी के शिष्यों में थे। श्रीगदाधर वाणी बड़ी उत्कृष्ट कविता हुई। (२१८) श्रीनारायण दास जी। (८०४) छप्पय । (३९) । हरिभजन सीवस्वामी सरस, श्रीनारायणदास अति॥ भक्ति जोग जुत, सुदृढ देह, निज बल करि राखी। हिये सरूपानन्द, लाल जस रसना भाखी॥परिचै प्रचुर प्रताप । जानमनि रहस सहायक । श्रीनारायण प्रगट मनौ लो- गनि सुखदायक ॥नित सेवत संतनि सहित, दाता उत्तर देसगति। हरिभजन सीव स्वामी सरस, श्रीनारायणदास अति॥१८७॥(२७) वात्तिक तिलक । अति सरस मतिवाले श्रीहरि भजन की सीमा स्वामी श्रीनारा- यणदासजी हुये । अतिशय दृढ़ भक्तियोग से युक्त अपने देह को वीर्य बल के सहित कर रक्खा, और स्वरूपानन्द में मन मग्न किया। जीभ से श्रीलालजी के नाम और यश कहा करते थे । अपने विख्यात प्रताप से परिचय भी दिया, ज्ञानियों में शिरोमणि भगवत् रहस्य के सहायक थे । अापकी बड़ाई कहाँ तक की जाय लोगों को सुख देने के लिये मानो साक्षात् श्रीनारायण स्वयं प्रगट हुये । हित सहित नित्य संतों की सेवा करते, उत्तर देश बदरिकाश्रम के जीवों को गति देनेवाले हुये ॥ "श्रीनारायणभट्टजी, (जिनकी कथा मूल ८७ कवित्त ३५६ में कह ---