पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९३६

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९१७ mantrang + + +++PAREEvend- भक्तिसुधास्वाद तितल। साधु भक्तिभाव देखने के लिये आये; श्रीरामदासजी बैठे थे, सो उन्हीं से पूछा कि "रामदास कौन हैं?" आप उठके सन्त को दण्डवत् कर, चरण धो बोले कि "अभी आता है रामदास आप चलिये प्रसाद पाइये, सन्त ने कहा कि "रामदास कहाँ है ? उनके दर्शन की मुझे विशेष चाह है, प्रसादादिक की चाह सामान्य है।" तब आपने हाथ जोड़कर विनय किया कि “चलिये प्रसाद पाइये, तब मैं रामदास को बुला दूंगा।" सन्त ने पुनः कहा कि "नहीं रामदासजी के दर्शन कर, तब पाऊँगा।" तब आप बोले कि “आप अपने गृह में पधारिये, रामदास' यही है।" साधुजी सुनतेही चरणों में लपट गये, प्रेमानन्द हृदय में नहीं समाता था, और भाव से भरके कहने लगे कि “धन्य आप हैं, भापके यशरूपी चन्द्रमा की जौह्न (जोन्हाई, उजियारी) जगत् में छा रही है।" (८२१) टीका । कवित्त । (२२) बेटी को विवाह, घर बड़ौ उतसाह भयो, किए पकवान नाना, कोठे माँझ धरे हैं । करें रखवारी सुत नाती दिये तारौ स्हैं; और ही लगाये तारो खोल्यो नहीं डरे हैं | आये गृह संत तिन्हें पोट बँधवाय दई, पायो यो अनन्त सुख ऐसे भाव भरे हैं । सेवा श्रीबिहारीजाल, गाई पाक सुद्ध- ताई, मेरे मन भाई, सब साधु उर हरे हैं ॥ ६२६॥ (४) वात्तिक तिलक। आपके गृह में बेटी के विवाह का बड़ा उत्साह था, रात के लिये घर के लोग पकवान मिठाई बनवा, कोठे में रक्खे, ताला दे, पुत्र पौत्रादिक आपसे डरते, रक्षा करते थे। सन्तों की एक 'जमात' आई, श्राप गृहके लोगों का भय छोड़ दूसरी कुंजी लगाकर ताला खोल, सन्तों को सब पकवान की गठरियाँ वधवा दी, सन्त पाकर अति सुखी हुये, देकर आप भी सुखी हुये । सन्तों के प्रेमभाव से आप ऐसे भरे थे। श्रीविहारी लालजी की सेवा सप्रेम करते थे भोग के लिये पाक रसोई अति स्वच्छता से कर, सन्तों को प्रसाद पवाते थे। भापकी सचाई