पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९३७

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+ + + + + थीभक्तमाल सटीक । ने सब संतों का मन हर लिया और मेरे मनको अति प्रिय लगी इससे मैंने गान किया है। श्रीरामदास बहुत हुए-एक ये, एक श्रीडाकोर के क्षेत्र के रहनेवाले, एक रामदासजी श्रीमीराबाई के पुरोहित, एक चौहान राजपूत एक खमाच के रहनेवाले इत्यादि ॥ (२२६) श्रीरामरायजी। (८२२) छप्पय । (२१) विप्रसारसुत घर जनम,रामराय हरिरति करी ॥भक्ति ज्ञान, बैराग, जोग, अंतरगति पाग्यौ । काम, क्रोध, मद, लोभ,मोह,मतसर,सब त्याग्यौ।कथा कीरतनमगनसदा आनँद रस झूल्यौ ॥ संत निरखि मन मुदित, उदित रवि पंकज फूल्यो । बैर भाव जिन द्रोह किय, तासु पाग खसि भ्वं परी । बिग्र सारसुत घर जनम, रामराय हरि रति करी॥१६७॥ (१७) वात्तिक तिलक । सारस्वत ब्राह्मण के घर में जन्म लेकर, श्रीरामरायजी ने भगवत् से प्रीति की। आपका हृदय भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, योग इन साधनों से पग रहा था, और काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, मत्सर आदि दुर्गुणों को आपने त्याग किया था। श्रीहरिकथा कीर्तन में मग्न होकर सदा यानन्द के रस से झूलते थे। जैसे सूर्य को उदित देख कमल फूलते हैं इसी प्रकार आप सन्तों को देख प्रमुदित प्रफुल्लित होते थे, आपसे जिसने बैरभाव से द्रोह किया उसके सीसकी पाग भूमि में गिर पड़ी। एक समय सज्जनों की सभा में एक धनी दुष्ट आपसे द्रोहकर, निन्दा करने लगा, उसकी पाग प्रभुप्रेरणा से अनायास भूमि में १ वै=भूमि ॥