पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९४२

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। कि "अरे कर लोगो ! मुझे कहाँ लिये जाते हो ?" लोगों ने उत्तर दिया कि "जिसका आप नित्य ध्यान करते थे, उसी वृन्दावन को लिये चलते हैं," आपने कहा कि "फेर ले चलो, यह शरीर श्रीवृन्दावन जाने का पात्र नहीं है, वहाँ जलावोगे तब प्रिया प्रियतम को दुःसह दुर्गन्धि प्राप्त होगी, जो जानेवाला है, सो जीव तो युगल के पास पहुंचेहीगा।" ऐसे भाव के भरे श्रीमाधवदासजी श्रागरे में आकर शरीर छोड़ प्रिया प्रियतम को प्राप्त हुये। दो. “जे जन रूखे विषय रस, चिकने राम सनेह । तुलसी ते प्रिय राम के, कानन वसहिं कि गेह ॥१॥" "भजन भरोसे राम के, मगहर तजे सरीर। अविनासी की गोद में, विलसे दास कवीर ॥ २॥" (२२३) श्रीलालमती देवीजी। (८२८) छप्पय । (१५) दुर्लभ मानुष देह कौ, “लालमती" लाहौ लियो। गौर स्याम सों प्रीति, प्रीति जमुना कुंजनि सों। बसीबट सौ प्रीति, प्रीति ब्रजरज पुंजनि सों ॥ गोकुल गुरुजन प्रीति, प्रीति घन बारह बन सौ । पुर मथुरा सौ प्रीति प्रीति गिरि गोबर्द्धन सों। वास अटल वृन्दा विपिन, दृढ़करि सो नागरि कियो । दुर्लभ मानुष देह को, "लालमती" लाहौ लियो || १६६ (१५) यहाँ किसी छपी प्रति में एक छप्पय अधिक है, पर किसी लिखी पति में वह पाया नहीं जाता। वात्तिक तिलक । देवी श्रीलालमतीजी ने दुर्लभ मनुष्य देह का लाभ भले प्रकार स नोट-"शाहजहाँ ने तजि दुनियाई । औरंगजेब की फिरी दुहाई"।। श्रीधरनीदास, मांझी. सारन, श्रीसत्यतट।