पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९४३

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९२४ ++++ 14-HAPawa r endra IHARIH . . . ......श्रीभक्तमाल सटीक ............ श्रीभक्तमाल सटीक। लिया। क्योंकि गौर श्याम श्रीराधाकृष्णजी में अति प्रीति थी, यमुनाजी में और यमुनाकूल के कुंजों में श्रति प्रीति, बंसीवट में और ब्रजरज के पुंजों में प्रीति, गोकुल में तथा गोकुलनिवासी गुरुजनों में प्रीति, और सघन बारहो वन में प्रीति, पुर मथुरा से प्रीति, और गिरिगोवर्द्धन से प्रीति थी, उस नागरी ने अर्थात् प्रीतिपथ-प्रवीना ने इन सबों को प्रीति से युक्त अचल दृढ़ वृन्दावन वास कर, मनुष्यदेह का लाभ लिया। श्रीराधाकृष्ण में प्रीति वात्सल्यभाव से इन्हें थी सो जानिये ॥ मूल १६६ तक गोस्वामी श्रीनामाजी महाराज समर्थ ने इतने एक सहस्र से अधिक भक्तों सन्तों के नाम और यश के वर्णेन को समाप्त किया । अब शेष १५ में आप कुछ माहात्म्य, विनय, तथा अनुक्र- मणिका लिखते हैं। ( ८२९ ) छप्पय । (१४) "अगर" कहै त्रैलोक में हरि उर धरे तेई बड़े॥ . कबिजन करत बिचार बड़ौ कोउ ताहि भनिजै । कोउ कह अवनी बड़ी जगत आधार फनिजै । सो धारी सिर सेस सेस शिव भूषन कीनौ।शिव आसन कैलास भुजा भरि रावन लीनौ ॥रावन जीत्यौ बालि बालि राघो इक सायकदँड़े। “अगर*" कहै त्रैलोक में हरि उर धरे तेई बड़े ॥२००॥ (१४) वात्तिक तिलक । धरणी, श्रीशेषजी, श्रीशिवजी, कैलास, रावण, वालि, श्रीराघव रामचन्द्रजी, क्रम से एक से एक बड़े, पर श्रीश्रग्रजी कहते हैं कि तीनों लोकों में श्रीराघव को जो हृदय में धारण करता है सोई सबसे बड़ा है, उन्हीं को भजना चाहिये ॥ (८३०) छप्पय । (१३) हरि सुजस प्रीति हरिदास कैं, त्यौं भावै हरिदास

  • बोध होता है कि श्रीअनदासजी के इन छप्पयो को श्रीनाभास्वामी ने परम उत्तम

मगलप्रद जानकर यहां स्थान दिया है अथवा मगल' के लिये अपने ही इन छन्दो में "श्रीमग्रजी का छाप दे दिया है। इति शुभ ॥