पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९४५

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९२६ श्रीभक्तमाल सटीक । AN H -+- - - - - - - - - तथा वाल्मीकीयरामायणे । “सख्यं च रामः सुग्रीवे प्रभावञ्चानिलात्मजे। वानराणाञ्च तत्कम त्वाचचक्षे च मैत्रिणाम् ॥" चौपाई। "ये सब सखा सुनहु मुनि मेरे । भये समर सागर कहँ वेरे ॥ मम हित लागि जन्म इन हारे। भरतहुँ ते मोहिं अधिक पियारे॥" (८३१) छप्पय । (१२) उतकर्ष सुनत संतनि कौ, अचरज कोऊ जिनि करौ॥ दुर्वासा प्रति,स्याम दासबसता हरि भाषी । ध्रुव, गज पुनि प्रह्लाद, राम,शबरी फल साखी ॥राजसूय यदुनाथ चरण धोय जूंठ* उठाई। पांडव बिपति निवारि, दियौ बिष विषया पाई ॥ कलि विशेष परचौ प्रगट, आस्तिक लैकै चित धरौ। उतकर्ष सुनत संतान को, अचरज कोऊ जिनि करी॥२०२॥ (१२) जब ते रसखानि विलोकत ही, तव ते कछु और न मोहिं सोहातो। प्रीति की रीति में लाज कहाँ, कछु है सो बड़ो यह प्रेम के नातो ॥" वात्तिक तिलक । श्रीभक्तमालकारस्वामी सबसे कहते हैं कि सन्तों का उत्कर्ष अर्थात् उत्तम प्रताप प्रभाव प्रभु के दिये परचो आदिक सुनके कोई आश्चर्य मत करो कि “यह कैसे हुश्रा ? हमारे मन में नहीं पाता।” देखो चारों युगों में भगवान् ने अपने भक्तों की रक्षा की, और उनके साथ अनेक आश्चर्य चरित्र किये। दुर्वासाजी से श्रीनारायणभगवानजी ने श्रीमुख से कहा कि "हे मुने ! हम अपने भक्तों के अाधीन, और उनके बस हैं ॥" और देखो ध्रवजी पर कैसी कृपा की और गजराज की कैसी रक्षा की, प्रह्लादभक्त के लिये किस प्रकार खंभा फाड़के