पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९४९

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P adMaraPAHAMANEratotraranbeaut- Net a INMMINGAN- श्रीभक्तमाल सटीक । कहते सुनते में जो कोई दुष्ट पाकर असूया (निन्दा कुतर्क) करता है, उसके पेट में, इस लोक में जलंधर, शूल आदिक रोगों की व्यथाएँ बढ़ती है, और परलोक भी नष्ट हो जाता है। श्लोक-“यो हि भागवतां लोके उपहासं द्विजोत्तम । करोति तस्य नश्यन्ति धर्ममर्थों यशः सुताः॥१॥ निन्दा कुर्वन्ति ये मूढा वैष्णवानां महात्मनाम् । पतन्ति पितृभिस्सार्द्ध महारौरवसंज्ञके ॥२॥ चौपाई। होहिं उलूक सन्त निन्दारत । मोहनिशा मिय ज्ञानभानु मत ॥" "सन्तद्रोह, प्रीति मोहूँ सों, मेरो नाम निरन्तर लैहै। अग्रदास भागात बदत है, मोहिं भजत, पर यमपुर जैहै ॥" (३९) दोहा । (४) जौ हरि प्राप्ति की आस है, तो हरिजन-गुन गाय। नतरुसुकृत जेवीज ज्यों,जनम जनमपछिताय२१०(४) इसे कभी नहीं भूलिए ॥ वात्तिक तिलक । जो श्रीहरिरूप प्राप्ति होने की आशा किसी को होय तो श्रीहरि भक्तों के गुण यश सप्रेम गान करै (श्रीभक्तमाल पाठ करे) इससे श्रीहरि अवश्य मिलते हैं । और जो श्रीभगवद्भक्तों के सुयश का निरादर करके और अनेक सुकृत धर्मकर्मों की प्रास करता है तो, जैसे मुंजा बीज (अन्न) भूमि में वोने से जमता नहीं है बरञ्च सड़ जाता है ऐसे ही उसके सुकर्म भी व्यर्थ हो जाते हैं । वह प्राणी जन्म जन्म पश्चाताप करता है और करेगा । प्रियपाठक ! यह समझने की बात है। (४०) दोहा । (३) भक्तदाम संग्रह करे, कथन, सवन, अनमोद। सो प्रभु प्यारौ पुत्र ज्यौं, बैठे हरि की गोद ॥ २११ ॥ (३)