पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९५०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । वात्तिक तिलक । श्रीभक्तदाम ("भक्तमाल" इस ग्रन्थ को जो कोई प्रेमपूर्वक कहैगा और सुनेगा तथा संग्रह अनुमोदन करैगा अर्थात् भाव और अर्थ विचार- के थानन्दित होगा सो प्रभु के पुत्र के समान प्यारा होगा और श्रीहरि के गोद (अंक) में बैठेगा। यह श्रीनाभा स्वामीजीकृत आशीर्वाद है ।। श्लोक-"तिष्ठते वैष्णवं शास्त्रं लिखितं यशमन्दिरे । तत्र नारायणो देवः स्वयं वसीत नारद ॥ १ ॥" (८४१) दोहा । (२) अच्युतकुलजस यक बेरहुँ, जाकी मति अनुरागि। उनकी भक्ति*सुकृत को, निहच होयविभागि ॥११२॥(२) वात्तिक तिलक ।। इस अच्युत कुल (वैष्णवों) के यश में एक बेर भी जिसकी मति ने अनुराग किया, अर्थात् प्रेमपूर्वक कथन या श्रवण किया, सो अनुरागी इन सब सन्तों के भक्ति भजन सुकृत का विभागी होगा अर्थात् अवश्य भाग पावेगा इसमें सन्देह नहीं है ॥ (८४२) दोहा । (१) भक्तदाम जिन जिन कथी, तिनकी जूंठनि पाय। मों मतिसार अक्षर, कीनौं सिलौ बनाय ॥२१३॥(१) वात्तिक तिलक । जिन जिन महानुभावों वाल्मीकि शुकादि ने भगवद्भक्तों के सुयश की माला कही है, उन्हीं की जूठनियायके मेरी मति सारांशउच्चशिला बनाकर चुन विन के दो चार अक्षर और मिलाके भक्तमाल बना दी है। (आपकी दीनता है।) (४३) दोहा । ( ) काहू के बल जोग जग, कुल करनी की आस ।

  • भजन ।