पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९५१

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थीभक्तमाल सटीक । भक्तनाममाला अगर,उर (बसो)नारायणदास॥२१४॥(०) इति मूल भक्तमाल वात्तिक तिलक। किसी को योग का बल है, किसी को यज्ञ का बल है और किसी को कुल का बल है तथा किसी को अपनी करनी के फल की प्राशा है, परन्तु मेरे तो योग यज्ञ कुल करनी किसी की भी अाशा नहीं है, केवल यही पास है कि अनन्त श्रीगुरु अग्र स्वामी की कृपा से मुझ नारायण- दास (नाभा) के हृदय में श्रीअग्रदेव तथा यह भवनाम-माल बसें (या, बसे हैं)। इति श्रीमद्रामानन्दीय वैष्णव श्री १०८ अग्रदेवशिष्य नाभाख्य (सियसहचरी) श्रीनारायणदास ग्रथिता भगवद्भक्त रत्नमाला सटीक सतिलक समाशा, श्रीभगवत्प्रीयताम् ॥ श्रीगोविन्ददासजी (छप्पय १६२) को स्वयं श्रीनामा स्वामी- जी ने यह "भक्तनाममाला" पढ़ाई ("तसनीझ रा मुसनिक नेको कुनद् बयाँ") टीकाकर्ता श्रीप्रियादासजी अब आगे वर्णन करते हैं कि- कवित्त। रसिकाई कविताई जीन्ही दीनी तिनि पाई भई सरसाई हिये नव नव चाय हैं। उर रंगभवन में राधिका वन बसें लसै ज्यी मुकुर मध्य प्रतिबिंब भाय हैं । रसिक समाज में विराज रसराज कह चहैं मुख सब फलैं सुख समुदाय हैं । जन मन हरि लाल मनोहर नांव पायो उनहूँ को मन हरि लीनौ ताते राय हैं ॥ ६३०॥ इनहीं के दास दास दास प्रियादास जाना तिन लै बखानौ मानो टीका सुखदाई है। गोवर्द्धननाथजू के हाथ मन एस्सो जाको कसो वास वृन्दावन लीला मिलि गाई है । मति उनमान कह्यौ लह्यो मुख