पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९७४

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जीवनी। LAN GAN A MAHararamupHAMPATutrana-Mere-ecti श्रीसीतारामाभ्यां नमः। . श्रीहनुमते नमः। भक्तिसुधास्वाद श्रीभक्तमाल के तिलक के कर्ता की संक्षिप्त जीवनी । "स्वामी श्री १०८ रामचरणदास महाराजजी के शिष्य, श्रीवास्तव कायस्थ मुंशीतपस्वीराम भक्तमालीजी के प्रात्मज, श्रीसीतारामशरण भगवानप्रसाद रूपकलाजी वाईस वर्ष की अवस्था में सन् १८६३ ईसवी में ३० रु० पर पटने के सब इन्स्पेक्टर ऑफ स्कूल्स नियत हुए। शाहा- वाद, गया, सम्पारन, मुजफ्फरपुर, दरभंगा इत्यादि जिलों में फिरने के अनन्तर, पुरनिया नार्मल स्कूल के हेडमास्टर ८० रुपये पर नियत हुए, १८६७ में १०० रु० की डिपुटी इन्स्पेक्टरी का पद पाकर मुंगेर गए, जहाँ प्राय बारह वर्ष रहे, सन् १८७८ से २००३० वेतन पाने लगे, और १८८१ में भागलपुर गए। सन् १८८४ में श्रीसीताराम कृपा से प्रापकी उन्नति गजटेड डिपटी इन्स्पेक्टर ३०० रु० मासिक पर हुई। १८८६ में आप फिर पटने श्राए । संवत् १६४२ (१८८५१०) मैं आपके पिताजी का वैकुण्ठवास हुआ, और १६४७ (१८६० ई.) में आपकी स्त्री का भी, सन् १८६५ में श्रीमाताजी का भी॥ (२) तीस ३० वर्ष से अधिक गवर्नमेट की नौकरी कर संवत् १९५० ( १८६३ ई०) में काम छोड़, श्रीसीताराम कृपा से सीधे श्रीअयोध्याजी पहुँचे, आपने वैराग्य धारण किया । (३) श्रीभक्तमाल का तिलक, इत्यादि लिखे ॥ आप सन् १८६३ ई० से श्रीसीताराम कृपा का धन्यवाद गुणानुवाद गाते गवाते . हुए, बरादर श्रीसरयू अयोध्याजी के शरण में विराजते रहे। डेढ़ सौ महीना पेन्शन पाते थे। अब आप इस असार संसार को त्यागकर वैकुण्ठ धाम को चले गये। "प्रसाद रामनाम के पसारि पाँय सतिहीं ॥"