पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८०

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++++44 - deo श्रीभक्तगुण और लक्षण। [३] अल्पाहार, विना भूख के भोजन न [१४] श्रीगुरु भगवत् और भागवतों के करना सामने जो काम न करना चाहिए [८४] शील, उदारता, दान, परहित उसको कदापि न करना [८५] अपने दूपणों, अपराधो, और दोपों [ ९५ ] मरने की घड़ी जिसकी और चित्त को समझना, उन पर ग्लानि लज्जा जाना मला समझा जाता है उसी भय और पश्चात्ताप करना और सदा मन चित्त लगाना [८६] सन्ध्या, अर्द्धरात्रि और ब्राह्ममुहूर्त | [ ९६ ]इस घड़ी के कृत्य कर्तव्य को भविष्य को भगवत्पदचिन्तवन-ध्यान में पर न उठा रखना अवश्य सुरति को लगाना [९७ ] मत्सर तज, अपने सरिस हारों के [७] श्रवण, नयन, रसना और मन को लिये चाहना विपत: रोकना [९८ । अहंता ममता मैं मोर हम हमार . [८] अन्तःकरण को भगबत् बिन अन्य तजके, जो कुछ जानते हैं उनको किसी में रमने न देना आचरण में चरितार्थ करना [८९] कर्मेन्द्रियाँ जो कर्म करे उसमे [ ९९ ] अप्ठ्याम मानस भावना अन्तःकरण को लगने न देना स्वास [१०] सुरति सदैव अचल वहीं न खोना ०१] गुप्त जाप और उच्च स्वर ने भी [९०] भगवत् कृपाओं को समझना और नामोच्चारण करना धन्यवाद करना गुण गाना १०२] अभ्यास, जतन, थम [९१] प्रियतम प्रभु से बातें किया करना [१०३] गान्ति, निर्द्वन्द्वता विरति [१२] अपने तई भजन पूजा व किसी [१०४] प्रेमदगा, जैसे गद्गद वचन सजल सुकर्म का कर्ता न जानना नयन इत्यादि १३] निद्रा, आलस्य, प्रमाद, असाव- [१५] विप्रचरण अति प्रीति धानता-त्याग, स्मरण भजन सत्संग [१०६] श्रीसरखू गंगा यमुना मे रमना -- महिमा