पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८१

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श्रीभक्तमाल सटीक । ( १०७ ) कवित्त। 'श्रद्धा' ई फुलेल औ उबटनो 'सखन कथा' मैल अभिमान अंग अंगनि छुड़ाइये । 'मनन' 'सुनार भन्दवाय अँगुखाइ 'दया' 'नवनि वसन, पन' साँधो लै लगाइये। भाभरन नाम हरि 'साधुसेवा कर्ण- फूल, 'मानसी सुनथ, संग' अंजन, बनाइये । “भक्ति महारानी को सिंगार चारु, वीरी चाह रहै जो निहारि लहै लाल प्यारी गाइये ॥१॥ बड़े भक्तिमान, निशि दिन गुणगान करें, हर जगपाप, जाप हियो परिपूर है। जानि सुखमानी हरि सन्त सनमान सचे, बचेऊ जगत रीति, प्रीति जानी भूर है । तऊ दुराराध्य, कोऊ कैसे के प्राधि सके, समझो न जात, मन कंप भयो चूर है। शोभित तिलक भाल, माल उर राजै, ऐपे विना भक्तमाल भक्तिरूप पति दूर हैं ॥२॥ (१०८) श्रीभक्तमाल, श्रीभागवत, श्रीनारदभक्तिसूत्र, श्रीरामचरित्रमानस, श्रीजानकीस्वराज, श्रीरामस्तवराज, श्रीभगवदगीता, श्रीवाल्मीकीय रामायण, इत्यादि को पाठ करना तथा सुनना सुनाना। चौपाई। एवमादि हरिजन गुण जेते । कहि न सकहि श्रुति शारद तेते ॥ जलसीकर महिरज गनि जाहीं। हरिजनगुण नहिं बरनि सिराहीं॥ दीन खेदनलाल* का बाबू खेदनलाल कसवन्दन पेन्धानर, श्रीस्वामी हसकलाजी के शिष्य, महल्ला गुड़हट्टा शहा भागलपुर।