पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८३

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+-+- ++ ++Harendar श्रीभक्तमाल सटीक । रामत करि जव आए सही। काल्हि कथा कहि हैं तब कही॥६॥ पै कह रही सँभार सुनाहीं । तव श्रीप्रभु निशिसपने माहीं ॥३०॥ कही पुजारी सों यह बाता। हमने कथा सुनी सुखदाता ॥११॥ श्री रैदास भक्त की अहो । कथा भई अब आगे कहो ॥१२॥ दो० सुनत पुजारी के हगन, आँसू बहे अपार।। याके श्रोता आप हैं, यहै कियो निरधार ॥१॥ चौपाई। पुनि दुजो इतिहास सुनो अब । प्रियादास टीका कीन्हीं जब ॥ १॥ तव व्रज परिकरमा को गये। फिरत फिरत होइल जा छये ॥२॥ लालदास तहँ हैं महन्ता। बड़े सन्तसेवी रसवन्ता ॥३॥ सब समाज तिन राख्यौ सही । भक्तमाल कहिये यह कही ॥ ४ ॥ भक्तमाल तहँ होन सुलागी । सुनन लगे सवलोग सुभागी॥५॥ यक दिन तह निशि आये चोरा ! सबै वस्तु लीन्हीं सु ढूँढोरा॥६॥ ठाकुर हूँ को ते ले गये। हरिही के ये कौतुक नये ॥७॥ प्रात पये सवही दुख छाये। प्रियादास हूँ अति अकुलाये ॥८॥ कथा कही न रसोई कीनी। वड्डरो यहि दुख में मति भानी ॥ ६ ॥ ठाकुर को यह चरित न प्यारे । यहि ते चोरन संग पधारे ॥१०॥ तब तौ श्रीमहंत यह कही । हरि तोत्यागि गये मोहिंसही ॥११॥ तुमहूँ त्याग करोगे जो पै। मेरी गति का होइहै तो ॥१२॥ ताते हरि इच्छा मन दीजे । कहिये कथा रसोई कीजै ॥१३॥ तव श्री प्रियादास यों कही । अब ते कथान कहिही सही ॥१४॥ श्रीनाभाजी वचन उचारे। ज्यों जनको हरिके गुन प्यारे॥१५॥ यो त्यों जन के गुन प्यारे हरिको । अब यह सतमानै उर धरिको ॥१६॥ अस कहि सब दिन भूखे रहे । तब सपने हरि चारनि कहे ॥१७॥ मोहिं जहाँ के तहँ पहुँचाया । नातरु तुम बहुतो दुख पावौ ॥१८॥ दुगुने दुःख परे हैं हम पर। चौगुन दुख डारब हम तुमपर ॥१६॥ एक भक्त मम है दुखमाहीं । भक्तमाल पुनि सुनी सुनाहीं ॥२०॥ अस सुनि वोर उठे अधराता । ठाकुर को लै हरषितगाता ॥२१॥