पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८४

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.. mantraneKMPHIBHANA श्री भक्तमाल-माहात्म्य ढोल बजावत गावत श्राये । संग सबै सामग्री लाये ॥ २२ ॥ पात होन पायो नईि सही । यक दुजाय सबन सों कही ॥ २३ ॥ चोर तुम्हारे ठाकुर ल्यावत । झाँझ बजावत गावत आवत ॥ २४ ॥ सुनि सब साधुनिपट हरषाये । नाम उचारत सनमुख धाये ॥ २५ ॥ सुधि बुधि गई प्रेम उर छाये । जाय परस्पर मिले सोहाये ॥ २६ ॥ चोरौ कछु कहिसकैन बतिया । हम भरि आये फाटत छतिया ॥ २७ ॥ पुनि धरि धीर कहन असलागे । स्वपने कह्यो जो हरिदुख पागे ॥ २८ ॥ दोहरे दुःख परे हैं हमको। देहे दुःख चौहरे तुमको ॥ २६ ॥ नातो अहिं हमहिं लै चलो । सन्तनि को देवो अति भलो॥३०॥ यक दुख मम जन भूखे सही । सुने जु भक्तमाल पुनि नहीं ॥३१॥ सुनि यह बात सबै हर्षाने । नामा वचन सत्य सब जाने ॥ ३२॥ गेह ल्याय बढ़ उत्सव कीनों । सबको मन जन चरितन भीनों ॥ ३३ ॥ याके श्रोता हैं हार आपै । सब यह जानि तजे मन तापै ॥ ३४॥ दो हाथ कंकनहिं पारसी, कहा दिखाये माहि । हरि श्रोता बिन सबनि के, यो मन अटकति नाहि ॥ ३५ ॥ चौपाई। श्रोता वक्ता को फल जोई । कापै कहि श्रावत है सोई॥३६॥ जो लिखाय उर राखे याको । अन्तकाल हरिमापति ताको ॥ ३७॥ तहाँ एक सुनिये इतिहासा । आयो प्रियादास कोउ पासा ॥ ३८ ॥ तिन कहि भक्तमाल जोषाही । मोहिं लिखाय देहु प्रभुताही ॥३६॥ तिन तेहिकही सुनहु सुखरासा। कहन सुननको है अभ्यासा ॥४०॥ सो कहि मैं कछु कहिनहिंजानौं। सुनवेहुँ की गति नहिंपहिचानौं ॥ ४॥ आप कहे तो करिही काहा । तिनयक कह्यो वचन अवगाहा ॥ ४२ ॥ महाराज मैं हाँ व्यवहारी । गृह कामनि मैं बूड़यों भारी ॥ ४३ ॥ साधु संगतिहुँ को नहि धारी । ताते मैं मन माहिं विचारी ॥४॥ भरती बार हृदय पर परिहौं । इतने साधुन संग उवरिहीं ॥ ४५ ॥ सुनि यह बात नयन भरित्राये। बहुत बड़ाई करि सुख छाये ॥ ४६॥ ताको पोथी दियो लिखाई । सो ले घर गवन्यो सुखपाई ॥१७॥