पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८५

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+ + + + ++ puti o n- [ + + ++ + 4- श्रीभक्तमाल सटीक । गृह कारज में अटक्यो भारी । आई ताहि मीचु भयकारी ॥४८॥ यमके दूतनि प्राय दवायो । दयो त्रास पुनि कंठ रुकायो॥ ४६॥ पुत्रादिक रोवहिं विललाता । तिन्हें सपनदै कही सुबाता ॥ ५० ॥ भक्तमाल की पोथी लाई । मो छाती में देहु लगाई ॥५१॥ ते लाये पोथी रसभरी। मरत पिता के हिय पर धरी ॥ ५२ ॥ सब यमदूत धरत डार भाजे ।ज्यों कायर शुरन के गाजे ॥ ५३ ॥ कंठ खुल्यो नैननि जल ढायौ । हरे राम गोंविद उचाखौ ॥ ५४॥ पुनि सव भक्तनिदरशन दीनौ । हिये माहिं आनँद सो भीनौ ॥ ५५ ॥ सुत हरषे पुनि पूछा अहो । कहा भयो सो हमसों कहो ॥ ५६ ॥ सो कह यमदूतनि दुखदीन्हों। हरिभक्तनि उवारि अब लीन्हों ॥ ५७ ॥ नामदेव रैदास कबीरा ।धना सेन पीपा मति धीरा ॥ ५८ ॥ ठाढ़े मोहिं कहैं यह बाता । हमरे सँग अावहु हे ताता ॥ ५६ ॥ सो मैं अब इनके सँग जैहौं । यमदूतान के मुख न चितेहौं ।। ६० ॥ असकहि राम कृष्ण उच्चारत । नैनमूदि हरि को उरधारत ॥६॥ प्राण त्यागिहरिको मिलिगयो। बेटन को अति ही सुख भयो । ६२ ।। तब ते तिनने यह मन भज्यो । जिन काहू कुल में तन तज्यो॥६३ ॥ तिनके हिये धरेउ यहि काहीं । तुलसी चरणामृत मुख माहीं ॥ ६ ॥ तिन कुटुम्ब नेवते जे पाये । तिन सबको यह चरित सुनाये ॥६५॥ सो हम लिखनिकियो है सही। और कहो महिमा का रही ॥६६॥ शेष सहस मुख जेहिं गावैगुन । सोउ जन चरण रेणु जाँचें पुन ।। ६७ ॥ आपते अधिकदास को मावे । उनकी महिमा किमि कहिावें ॥६॥ प्रियादास अतिही सुखकारी । भक्तमाल टीका विस्तारी ।। ६६ ॥ तिनको पौत्रपरम सँग भीनों । वक्तनहित महात्म यह कीनों ॥ ७० ॥ दो० "भक्तमाल के गंधकों, लेत भक्त अलि पाय । भेक विमुख ढिगही बसें, हैं कीच लपटाय ॥" इति श्रीमतमालमाहात्म्यं सम्पूर्णम् ।