पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/९८६

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समालोचना ९६५ || प्रमाणिफा छन्द ।। नमामि भक्तमाल को॥ "पढ़ें जो आदिअन्तलों वढें सो पर्मतंत लों, दहै अनन्त साल को नमामि भक्तमाल को ॥१॥ कथा करें जो याहि की व्यथा रहै न ताहि की, मिले सो रामलाल को नमामि भक्तमाल को॥२॥ प्रकार नौ की भक्ति जो सो अंग होत शक्ति सो, कहै गिरा रसाल को नमामि भक्तमाल को ॥ ३ ॥ गढ़े सो अन्य भाव है लहै जो भक्ति दाव है, यही प्रमाण भाल को नमामि भक्तमाल को॥ ४॥ अभक्त भक्ति को लहै सभक्ति मुक्त है रहै, गिने सो तुच्छ काल को नमामि भक्तमाल को ॥५॥ करें जो पाठ पात में सरै सुकाजगात में हरेहि कर्मजाल को नमामि भक्तमाल को॥ ६ ॥ मिलाय दुग्ध तक ते जु होत सर्षि चक्र ते, तथा सुबुद्धि वाल को नमामि भक्तमाल को॥७॥ बहुपमा कहाँ कहा कहे न पार को लहा, बखान सूर्य ख्याल को नमामि भक्तमाल को ॥ ८॥"