पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/११६

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श्रीमद्भगवद्गीता मानुषे एव लोके वर्णाश्रमादिकर्माधिकारो । मनुष्यलोकमें ही वर्णाश्रम आदिके कर्मोंका न अन्येषु लोकेषु इति निश्मा किंनिमित्त । अधिकार है, अन्य लोकोंमें नहीं, यह नियम किस कारणसे है ? यह बतानेके लिये ( अगला श्लोक इति। कहते हैं)- अथवा वर्णाश्रमादिप्रविभागोपेता मनुष्या अथवा वर्णाश्रम आदि विभागसे युक्त हुए मनुष्य मम वम अनुवर्तन्ते सर्वश इति उक्तं कस्मात् । सब प्रकारसे मेरे मार्गके अनुसार बर्तते हैं ऐसा आपने कहा, सो नियमपूर्वक वे आपके ही मार्गका पुनः कारणात् नियमेन तब एंव वर्त्म अनुवर्तन्ते अनुसरण क्यों करते हैं, दूसरेके मार्गका क्यों नहीं न अन्यस्य इति उच्यते- करते ? इसपर कहते हैं- चातुर्वण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः । तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ॥ १३ ॥ चातुर्वर्ण्य चत्वार एव वर्णाः चातुर्वण्यं मया (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-इन) चारों ईश्वरेण सृष्टम् उत्पादितम्, 'ब्राह्मणोऽस्य मुख- । वर्णोका नाम चातुर्वर्ण्य है । सत्त्व, रज और तम- मासीत्' इत्यादिश्रुतेः, गुणकर्मविभागशो गुण- इन तीनों गुणोंके विभागसे तथा कर्मोके विभागसे यह चारों वर्ण मुझ ईश्वरद्वारा रचे हुए-उत्पन्न विभागशः कर्मविभागशः च गुणाः सत्त्वरज- किये हुए हैं । 'ब्राह्मण इस पुरुषका मुख हुआ' स्तमांसि । इत्यादि श्रुतियोंसे यह प्रमाणित है। तत्र सात्विकस्य सत्त्वप्रधानस्य ब्राह्मणस्य उनमेंसे सात्विक-सत्वगुणप्रधान ब्राह्मणके शमो दमः तप इत्यादीनि कर्माणि । शम, दम, तप इत्यादि कर्म हैं। सत्त्वोपसर्जनरज प्रधानस्य क्षत्रियस्य जिसमें सत्त्वगुण गौण है और रजोगुण प्रधान है शौर्यतेजःप्रभृतीनि कर्माणि । उस क्षत्रियके शूरवीरता, तेज प्रभृति कर्म हैं। तमउपसर्जनरज प्रधानस्य वैश्यस्य कृष्या- जिसमें तमोगुण गौण और रजोगुण प्रधान है, दीनि कर्माणि । ऐसे वैश्यके कृषि आदि कर्म हैं। रजउपसर्जनतम प्रधानस्य शूद्रस्य शुश्रूषा तथा जिसमें रजोगुण गौण और तमोगुण प्रधान है उस शूद्रका केवल सेवा ही कर्म है । इति एवं गुणकर्मविभागशः चातुर्वयं इस प्रकार गुण और कर्मोके विभागसे चारों वर्ण मेरेद्वारा उत्पन्न किये गये हैं, यह मया सृष्टम् इत्यर्थः। अभिप्राय है। तत् च इद चातुर्वर्ण्य न अन्येषु लोकेषु। ऐसी यह चार वर्णोकी अलग-अलग व्यवस्था दूसरे लोकोंमें नहीं है इसलिये (पूर्व श्लोकमें) अतो मानुषे लोके इति विशेषणम् । 'मानुषे लोके' यह विशेषण लगाया गया है। एव कर्म।