पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/१५१

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शांकरभाष्य अध्याय ५ विज्ञाने कमैकदेशविषयाद् यमनियमादि- जो कर्त्तापनके ज्ञानसे युक्त होने के कारण एकदेशीय सहितत्वेन च दुरनुष्ठेयत्वात् सुकरत्वेन च | कर्मसंन्यास है और यम-नियमादि साधनोंसे युक्त कर्मयोगस्य विशिष्टत्वाभिधानम् इति । होनेके कारण अनुष्ठान करनेमें कठिन है, ऐसे संन्यासकी अपेक्षा कर्मयोग सुकर है, अतः उसकी श्रेष्ठताका विधान है। एवं प्रतिवचनवाक्यार्थनिरूपणेन अपि इस प्रकार भगवान्द्वारा दिये हुए उत्तरके अर्थ- पूर्वोक्त प्रष्टुः अभिप्रायो निश्चीयते इति स्थितम् । का निरूपण करनेसे भी प्रश्नकर्ताका अभिप्राय पहले बतलाया हुआ ही निश्चित होता है, यह सिद्ध हुआ। 'ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते” इति अत्र ज्ञानकर्मणोः ज्यायसी चेत्कर्मणस्ते' इस श्लोकसे ज्ञान और सहासंभवे यत् श्रेय एतयोः तत् मे ब्रूहि इति कर्मका एक साथ साधन होना असम्भव समझकर एवं पृष्टः अर्जुनेन भगवान् सांख्यानां 'इन दोनोंमें जो कल्याणकर है' वह मुझसे कहिये, इस संन्यासिनां ज्ञानयोगेन निष्ठा पुनः कर्मयोगेन प्रकार अर्जुनद्वारा पूछे जानेपर भगवान्ने यह निर्णय किया कि सांख्ययोगियोंकी अर्थात् संन्यासियोंकी योगिनां निष्ठा प्रोक्ता इति निर्णयं चकार । निष्ठा ज्ञानयोगसे और योगियोंकी निष्ठा कर्मयोगसे कही गयी है। न च संन्यसनाद् एव केवलात् सिद्धि केवल संन्यास करने मात्रसे ही सिद्धिको प्राप्त नहीं होता है, इस वचनसे ज्ञानसहित समधिगच्छति इति वचनाद् ज्ञानसहितस्य संन्यासको ही सिद्धिका साधन माना है, साथ ही सिद्धिसाधनत्वम् इष्टं कर्मयोगस्य च विधानात् । कर्मयोगका भी विधान किया है, इसलिये ज्ञानरहित ज्ञानरहितः संन्यासः श्रेयान किंवा कर्मयोगः संन्यास कल्याणकर है अथवा कर्मयोग, इन दोनोंकी श्रेयान् इति एतयोः विशेषबुभुत्सया- विशेषता जाननेकी इच्छासे अर्जुन बोला- अर्जुन उवाच- संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि । यच्छेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥१॥ संन्यासं परित्यागं कर्मणां शास्त्रीयाणाम् आप पहले तो शास्त्रोक्त बहुत प्रकारके अनु- अनुष्ठानविशेषाणां शंससि कथयसि इति एतत् । ष्ठानरूप कोका त्याग करनेके लिये कहते हैं पुनः योगं च तेषाम् एव अनुष्ठानम् अवश्य अर्थात् उपदेश करते हैं और फिर उनके अनुष्टान- कर्तव्यत्वं शंससि। की अवश्य-कर्त्तव्यतारूप योगको भी बतलाते हैं। अतो मे कतरत् श्रेय इति संशयः किं इसलिये मुझे यह शंका होती है कि इनमेंसे कौन-सा श्रेयस्कर है। कर्मोका अनुष्ठान करना कर्मानुष्ठानं श्रेयः किंवा तद्धानम् इति । कल्याणकर है अथवा उनका त्याग करना ?

  • ऐसे संन्यासमें गृहस्थाश्रमके कर्मों का तो त्याग है पर साथ ही संन्यास-आश्रमके कर्मों में अभिमान

रहता है इसलिये यह एकदेशीय संन्यास है।