पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/१६३

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NEPARAMAIRanasiquettapsinhasang शांकरभाष्य अध्याय ५ न ते दोषयन्तः । कथम्- उ०-वे दोषी नहीं हैं। क्योंकि- इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद्ब्रह्मणि ते स्थिताः ॥ १६ ॥ इह एवं जीवद्भिः एव तैः समदर्शिमिः जिनका अन्तःकरण समतामें अर्थात् सब भूतोंके पण्डितैः जितो वशीकृतः सगों जन्म येषां साम्ये अन्तर्गत ब्रह्मरूप समभावनें स्थित यानी निश्चल हो सर्वभूतेषु ब्रह्मणि समभावे स्थितं निश्चलीभूतं गया है, उन समदशी पण्डितोंने यहाँ जीवितावस्थामें ही सर्गको यानी जन्मको जीत लिया है अर्थात् मनः अन्तःकरणम् । उसे अपने अधीन कर लिया है। निर्दोष यद्यपि दोषवत्सु श्वपाकादिषु मृडैः क्योंकि ब्रह्म निर्दोष ( और सम ) है। यद्यपि तदोषैः दोषवद् इव विभाव्यते तथापि तद्दोषैः मूर्ख लोगोंको दोषयुक्त चाण्डालादिमें उनके दोषों के अस्पृष्टम् इति । निर्दोष दोषवर्जितं हि यस्मात् । । कारण आत्मा दोषयुक्त-सा प्रतीत होता है, तो भी वास्तवमें वह (आत्मा) उनके दोषोंसे निर्लिप्त ही है। न अपि स्वगुणभेदभिन्न निर्गुणत्वात् चेतन आत्मा निर्गुण होनेके कारण अपने चैतन्यस्य, वक्ष्यति च भगवान् इच्छादीनां गुणके भेदसे भी भिन्न नहीं है। भगवान् भी इच्छादिको क्षेत्रके ही धर्म तथा 'अनादि क्षेत्रधर्मत्वम् 'अनादित्वात् निर्गुणत्वात्' इति च । और निगुण होने के कारण' ( आत्मा लिप्त नहीं न अपि अन्त्या विशेषा आत्मनो भेदकाः होता ) यह भी कहेंगे । (वैशेषिक शास्त्रमें बतलाये सन्ति प्रतिशरीरं तेषां सत्त्वे प्रमाणानुपपत्तेः। हुए नित्य द्रव्यगत ) 'अन्त्य विशेष' भी आत्मामें भेद उत्पन्न करनेवाले नहीं है, क्योंकि प्रत्येक शरीरमें उन अन्त्य विशेषोंके होनेका कोई प्रमाण सम्भव नहीं है। अतः समं ब्रह्म एक च तस्माद् ब्रह्मणि एवं अतः ( यह सिद्ध हुआ कि) ब्रह्म सम है और ते. स्थिताः तस्माद् न दोषगन्धमात्रम् अपि एक ही है। इसलिये वे समदर्शी पुरुष ब्रह्ममें ही स्थित हैं, इसी कारण उनको दोषकी गन्ध भी स्पर्श तान् स्पृशति, देहादिसंघातात्मदर्शनाभिमाना- नहीं कर पाती। क्योंकि उनमेंसे देहादि संघातको आत्मारूपसे देखनेका अभिमान जाता रहा है। देहादिसंघातात्मदर्शनाभिमानवद्विषयं तु "समासमाभ्यां विषमसमे पूजातः' यह सूत्र तत् सूत्रम् सिमासमाभ्यां विषमसमे पूजातः' इति | पूजा-विषयक विशेषणसे युक्त होनेके कारण पूजाविषयत्वविशेषणात् । देहादि संधातमें आत्मदृष्टिके अभिमानवाले पुरुषोंके विषयमें है। भावात् ।