पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/१६७

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रतलgariwwearinive. Oct maa शांकरभाष्य अध्याय ५ क्रोधः च आत्मनः प्रतिकूलेषु दुःखहेतुधु वैसे ही अपने प्रतिकूल दुःखदायक विषयोंके दृश्यमानेधु श्रयमाणेषु स्मर्थमाणेषु यो दीखने, सुनायी देने या स्मरण होने पर उनमें जो द्वेषः स क्रोधः। द्वेष होता है उसका नाम क्रोध है। तो कामक्रोधौ उद्भवो यस्य वेगस स वे काम और क्रोध जिस वेगके उत्पादक होते हैं कामक्रोधोद्भवो वेगो रोमाञ्चनहटनेत्रयदनादि- वह काम-क्रोधसे उत्पन्न हुआ बेग कहलाता है। रोमांच होना, मुख और नेत्रोंका प्रफुल्लित होना लिङ्गः अन्तःकरणप्रक्षोभरूपः कामोद्भवो इत्यादि चिह्नोंवाला जो अन्तःकरणका क्षोभ है, वेगः। वह कामसे उत्पन्न हुआ वेग है। गात्रप्रकम्पप्रस्बेदसंदष्टौष्ठपुटरक्तनेत्रादि- तथा शरीर काँपना, पसीना आ जाना, होठोंको लिङ्गः क्रोधोद्भवो वेगः। चबाने लगना, नेत्रोंका लाल हो जाना इत्यादि चिह्नों- बाला वेग क्रोधसे उत्पन्न हुआ वेग है । तं कामक्रोधोद्भवं वेगं य उत्सहते असहते! ऐसे काम और क्रोधके वेगको जो सहन कर सकता सोढुं प्रसहितुं स युक्तो योगी सुखी च इह है उसको सहन करनेका उत्साह रखता है वह मनुष्य लोके नरः ॥२३॥ इस संसारमें योगी है और वही सुखी है ॥ २३ ॥ . h इति आह कथंभूतः च ब्रह्मणि स्थितो ब्रह्म प्राप्नोति ब्रह्ममें स्थित हुआ कैसा पुरुष ब्रह्मको प्राप्त | होता है ? सो कहते हैं- योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्योतिरेव यः। स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥ २४ ॥ यः अन्तःसुखः अन्तरात्मनि सुखं यस्य सः जो पुरुष अन्तरात्मामें सुखवाला है-जिसको अन्तःसुखः तथा अन्तरेव आत्मनि आराम | अन्तरात्मामें ही सुख है वह अन्तःसुखवाला है तथा जो अन्तरात्मामें रमण करनेवाला है-जिसकी क्रीड़ा आक्रीडा यस्य सः अन्तराराम: तथा एवं ( खेल ) अन्तरात्मामें ही होती है वह अन्तरारामी अन्तरात्मा एव ज्योतिः प्रकाशो यस्य सः है और अन्तरात्मा ही जिसकी ज्योति प्रकाश है अन्तज्योतिः एव। वह अन्तज्योति है य ईदृशः स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मणि जो ऐसा योगी है वह यहाँ जीवितावस्थामें ही निवृतिं मोक्षम् इह जीवन एव ब्रह्मभूतः सन् ब्रह्मरूप हुआ ब्रह्ममें लीन होनारूप मोक्षको प्राप्त अधिगच्छति प्रामोति ॥२४॥ हो जाता है ॥२४॥ Pr और भी- लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः । छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥ २५ ॥