पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/१७८

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श्रीमद्भगवद्गीता अथ इदानीं कदा योगारूढो भवति इति | साधक कब योगारूढ़ हो जाता है, यह अब उच्यते-- बतलाते हैं- यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषजते । सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥ ४ ॥ यदा समाधीयमानचित्तो योगी हि इन्द्रियार्थेषु चित्तका समाधान कर देनेवाला योगी जब इन्द्रियाणाम् अर्थाः शब्दादयः तेषु इन्द्रियार्थेषु | इन्द्रियोंके अर्थोमें, अर्थात् इन्द्रियों के विषय जो कर्मसु च नित्यनैमित्तिककाम्यप्रतिषिद्धेषु | शब्दादि हैं उनमें एवं नित्य, नैमित्तिक, काम्य और निषिद्ध कमि अपना कुछ भी प्रयोजन न प्रयोजनाभावबुद्धया न अनुषजते अनुषङ्ग | देखकर आसक्त नहीं होता, उनमें आसक्ति यानी कर्तव्यतावुद्धि न करोति इत्यर्थः । ये मुझे करने चाहिये ऐसी बुद्धि नहीं करता । सर्वसंकल्पसंन्यासी सर्वान् संकल्पान् इहा- तब-उस समय वह सब संकल्पोंका त्यागी मुत्रार्थकामहेतून संन्यसितुं शीलम् अस्य अर्थात् इस लोक और परलोकके भोगोंकी कामनाके इति सर्वसंकल्पसंन्यासी, योगारूढः प्राप्तयोग | कारणरूप सब संकल्पोंका त्याग करना जिसका इति एतत् तदा तस्मिन् काले उच्यते । स्वभाव हो चुका है, ऐसा पुरुष, योगारूढ़ यानी योगको प्राप्त हो चुका है, ऐसे कहा जाता है। सर्वसंकल्पसंन्यासी इति वचनात् सर्वान् 'सर्वसंकल्पसंन्यासी' इस कथनका यह आशय च कामान् सर्वाणि च कर्माणि संन्यसेद् है कि सब कामनाओंको और समस्त कर्मोको छोड़ इत्यर्थः। देना चाहिये। संकल्पमूला हि सर्वे कामाः- क्योंकि सब कामनाओंका मूल संकल्प ही है। 'संकल्पमूलः कामो वै यज्ञाः संकल्पसंभवाः ।' स्मृतिमें भी कहा है कि-'कामका मूल कारण ( मनुस्मृति २।३) संकल्प ही है। समस्त यज्ञ संकल्पसे उत्पन्न होते 'काम जानामि ते मूलं संकल्पात्त्वं हि जायसे । है।' 'हे काम! मैं तेरे मूल कारणको जानता हूँ। तू न त्या संकल्पयिष्यामि तेन मे न भविष्यसि । निःसन्देह संकल्पसे ही उत्पन्न होता है । मैं तेरा संकल्प नहीं करूँगा, अतः फिर तू मुझे प्राप्त (महा० शा० १७७ । २५ ) इत्यादिस्मृतेः । नहीं होगा।' सर्वकामपरित्यागे च सर्वकर्मसंन्यासः सिद्धो सब कामनाओंके परित्यागसे ही सर्व कर्मोका भवति स यथाकामो भवति तत्क्रतुर्भवति त्याग सिद्ध हो जाता है। यह वात यह जैसी कामना- वाला होता है वैसे ही निश्चयवाला होता है, जैसे यत्क्रतुर्भवति तत्कर्म कुरुते' (वृ०३ ०४१४१५) निश्चयवाला होता है वहीं कर्म करता है' इत्यादिश्रुतिभ्यः यद्यद्धि कुरुते कर्म तत्तत्कामस्य | इत्यादि श्रुतिसे प्रमाणित है और 'जीव जो-जो कर्म करता है वह सब कामकी ही चेष्टा है।' चेष्टितम्' (मनु० २।४) इत्यादिस्मृतिभ्यः च । इत्यादि स्मृतिसे भी प्रमाणित है ।