पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२०२

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श्रीमद्भगवद्गीता आपः अनलो वायु: खं मन इति मनसः (इस प्रकार पृथ्वी) जल, अग्नि, वायु और आकाश कारणम् अहंकारो गृह्यते । बुद्धिः इति अहंकार-1 एवं मन- यहाँ भनसे उसके कारणभूत अहंकार- कारणं महत्तत्त्वम् । अहंकार इति अविद्या-! का ग्रहण किया गया है तथा बुद्धि अर्थात् अहंकार- का कारण महत्तत्व और अहंकार अर्थात् अविद्या- संयुक्तम् अध्यक्तम् । युक्त अव्यक्त-मूलप्रकृति । यथा विषसंयुक्तम् अन्नं विषम् उच्यते एवम् जैसे विषयुक्त अन्न भी विष ही कहा जाता अहंकारवासनावद् अव्यक्त मूलकारणम् अहंकार वैसे ही अहंकार और वासनासे युक्त अव्यक्त-मूल- प्रकृति भी अहंकार' नामसे कही जाती है। क्योंकि इति उच्यते प्रवर्तकत्वाद् अहंकारस्य । अहंकार अहंकार सत्रका प्रवर्तक है, संसारमें अहंकार ही एक हि सर्वस्य प्रवृत्तिबीजं दृष्टं लोके । सत्रकी प्रवृत्तिका बीज देखा गया है । इति इयं यथोक्ता प्रकृतिः मे मम ईश्वरी इस प्रकार यह उपर्युक्त प्रकृति अर्थात् मुझ ईश्वर- मायाशक्तिः अष्टधा भिन्ना भेदम् आगता ॥४॥ की मायाशक्ति आठ प्रकारसे भिन्न है--विभागको प्राप्त हुई है ॥ ४॥ अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् । जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥ ५॥ अपरा न परा निकृष्टा अशुद्धा अनर्थकरी यह ( उपर्युक्त ) मेरी अपरा प्रकृति है अर्थात् संसारबन्धनात्मिका इयम् । परा नहीं, किन्तु निकृष्ट है, अशुद्ध है और अनर्थ करनेवाली है एवं संसारबन्धनरूपा है। इतः अस्या यथोक्ताया तु अन्यां विशुद्धां और हे महाबाहो ! इस उपर्युक्त प्रकृतिसे दूसरी प्रकृतिं मम आत्मभूतां विद्धि मे परां प्रकृष्टां | जीवरूपा अर्थात् प्राण-धारणकी निमित्त बनी हुई जीवभूतां क्षेत्रज्ञलक्षणां प्राणधारणनिमित्तभूतां जो क्षेत्रज्ञरूपा प्रकृति है, अन्तरमें प्रविष्ट हुई जिस प्रकृतिद्वारा यह समस्त जगत् धारण किया जाता है हे महाबाहो यया प्रकृत्या इदं धार्यते जगत् अन्त:- उसको तू मेरी परा प्रकृति जान अर्थात् उसे मेरी प्रविष्टया ॥५॥ आत्मरूपा उत्तम और शुद्ध प्रकृति जान ॥५॥ एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय । अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा ॥६॥ एतद्योनीनि एते. परापरे क्षेत्रक्षेत्रज्ञलक्षणे यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञरूप दोनों 'परा' और प्रकृती योनिः येषां भूतानां तानि एतद्योनीनि 'अपरा' प्रकृति ही जिनकी योनि-कारण हैं ऐसे ये समस्त भूतप्राणी प्रकृतिरूप कारणसे ही उत्पन्न भूतानि सर्वाणि इति एवम् उपधारय जानीहि । हुए हैं, ऐसा जान ।