पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२०७

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शांकरभाष्य अध्याय ७ यदि त्वां प्रपन्ना मायाम् एतां तरन्ति यदि आपके शरण हुए मनुष्य इस मायासे तर कस्मात् त्वाम् एव सर्वे न प्रपद्यन्ते, इति जाते हैं तो फिर सभी आपकी शरण क्यों नहीं उच्यते- लेते ? इसपर कहते हैं- न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः । माययापहतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः ॥ १५॥ न मां परमेश्वरं दुष्कृतिनः पापकारिणो मूढाः जो कोई पापकर्म करनेवाले मूढ़ और नराधम प्रपद्यन्ते नराधमा नराणां मध्ये अधमा निकृष्टाः हैं अर्थात् मनुष्योंमें अधम-नीच हैं एवं मायाद्वारा ते च मायया अपहृतज्ञानाः समुषितज्ञाना आसुरं जिनका ज्ञान छीन लिया गया है बे हिंसा, मिथ्या- भावं हिंसानृतादिलक्षणम् आश्रिताः ॥१५॥ भाषण आदि आसुरी भावोंके आश्रित हुए मनुष्य मुझ परमेश्वरकी शरणमें नहीं आते ॥ १५॥ ये पुनः नरोत्तमाः पुण्यकर्माण:- परन्तु जो पुण्यकर्म करनेवाले नरश्रेष्ठ हैं (वे क्या करते हैं सो बतलाते हैं )- चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन । आतों जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ १६ ॥ चतुर्विधाः चतुष्प्रकारा भजन्ते सेवन्ते मां हे भारत! आर्त अर्थात् चोर, व्याघ्र, रोग आदिके जनाः सुकृतिनः पुण्यकर्माणो हे अर्जुन । आर्त वशमें होकर किसी आपत्तिसे युक्त हुआ, जिज्ञासु आर्तिपरिगृहीतः तस्करव्याघ्ररोगादिना अर्थात् भगवान्का तत्त्व जाननेकी इच्छावाला, अर्थार्थी अभिभूत आपन्नो जिज्ञासुः भगवत्तत्त्वं ज्ञातुम् यानी धनकी कामनावाला और ज्ञानी अर्थात् विष्णुके इच्छति यः अर्थार्थी धनकामो ज्ञानी विष्णोः ! तत्त्वको जाननेवाला, हे अर्जुन ! ये चार प्रकारके तत्त्ववित् च हे भरतर्षभ ॥ १६॥ पुण्यकर्मकारी मनुष्य मेरा भजन-सेवन करते हैं॥१६॥ तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिविशिष्यते । प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहंस च मम प्रियः ॥१७॥ तेषां चतुर्णा मध्ये ज्ञानी तत्त्ववित् तत्त्व- । उन चार प्रकारके भक्तोंमें जो ज्ञानी है अर्थात् यथार्थ तत्त्वको जाननेवाला है वह तत्त्ववेत्ता होनेके वित्त्वात् नित्ययुक्तो भवति एकभक्तिः च अन्यस्य । कारण सदा मुझमें स्थित है और उसकी दृष्टि में भजनीयस्य अदर्शनाद् अतः स एकभक्तिः अन्य किसी भजनेयोग्य वस्तुका अस्तित्व न रहनेके कारण वह केवल एक मुझ परमात्मामें ही विशिष्यते, विशेषम् आधिक्यम् आपद्यते अति- अनन्य भक्तिवाला होता है । इसलिये वह अनन्य रिच्यते इत्यर्थः। प्रेमी (ज्ञानी भक्त) श्रेष्ठ माना जाता है। (अन्य तीनों- की अपेक्षा) अधिक-उच्च कोटिका समझा जाता है ।