पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२१९

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शांकरभाष्य अध्याय ८ onlod कविं क्रान्तदर्शिनं सर्वशं पुराणं चिरंतनम् जो पुरुष भूत, भविष्यत् और वर्तमानको जानने- अनुशासितारं सर्वस्य जगतः प्रशासितारम् अणोः बाले---सर्वज्ञ , पुरातन, सम्पूर्ण संसारके शासक और सूक्ष्माद् अपि अणीयांसं सूक्ष्मतरम् अनुस्मरेद् अणुसे भी अणु यानी सूक्ष्म से भी सूक्ष्मतर परमात्माका, अनुचिन्तयेद् यः कश्चित् सर्वस्य कर्मफलजातस्य जो कि सम्पूर्ण कर्मफलका विधायक अर्थात् विचित्र- धातारं विचित्रतया प्राणिभ्यो विभक्तारं रूपसे विभाग करके सब प्राणियोंको उनके कर्मोका विभज्य दातारम् अचिन्त्यरूपं न अस्य रूपं फल देनेवाला है, तथा अचिन्त्यस्वरूप अर्थात् जिसका नियतं विद्यमानम् अपि केनचित् चिन्तयितुं स्वरूप नियत और विद्यमान होते हुए भी किसीके शक्यते इति अचिन्त्यरूप द्वारा चिन्तन न किया जा सके ऐसा है, एवं सूर्यके आदित्यवर्णम् तम् आदित्यस्य नित्यचैतन्यप्रकाशो समान वर्णवाला अर्थात् सूर्यके समान नित्य चेतन- वर्णो यस्य तम् आदित्यवर्ण तमसः परस्ताद प्रकाशमय वर्णवाला है और अज्ञानरूप-मोहमय अन्धकारसे सर्वथा अतीत है, उसका स्मरण करता है। अज्ञानलक्षणाद् मोहान्धकारात् परम् । तम् अनुचिन्तयन् याति इति पूर्वेण एव (वह) उसका स्मरण करता हुआ उसीको प्राप्त संबन्धः ॥९॥ होता है, इस प्रकार पूर्वश्लोकसे सम्बन्ध है ।। ९ ॥ तथा- अचलेन। किंच-. प्रयाणकाले मनसाऽचलेन भक्त्या युक्तो योगबलेन चैव । भ्रुवोर्मध्ये प्राणमावेश्य सम्यक् स तं परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥ १० ॥ प्रयाणकाले मरणकाले मनसा (जो योगी) अन्त समय----


मृत्युकालमें भक्ति

चलनवर्जितेन भक्त्या युक्तो भजनं भक्तिः तया और योगबलसे युक्त हुआ-~-भजनका नाम भक्ति है, युक्तो योगबलेन च एव योगस्य बलं योगवलं उससे युक्त हुआ और समाधिजनित संस्कारोंके संग्रहसे उत्पन्न हुई चित्तस्थिरताका नाम योगबल है, तेन समाधिजसंस्कारप्रचयजनितचित्तस्थैर्य- उससे भी युक्त हुआ, चञ्चलतारहित-अचल मनसे, लक्षणं योगबलं तेन च युक्त इत्यर्थः । पूर्व पहले हृदय-कमलमें चित्तको स्थिर करके, फिर हृदयपुण्डरीके वशीकृत्य चित्तम्, तत ऊर्ध्व- ऊपरकी ओर जानेवाली नाडीद्वारा चित्तकी प्रत्येक गामिन्या नाड्या भूमिजयक्रमेण ध्रुवोः मध्ये भूमिको क्रमसे जय करता हुआ भ्रुकुटिके मध्यमें प्राणोंको स्थापन करके भली प्रकार सावधान हुआ प्राणम् आवेश्य स्थापयित्वा, सम्यग् अप्रमत्तः (परमात्मस्वरूपका चिन्तन करता है) वह ऐसा सन् स एवं बुद्धिमान् योगी 'कविं पुराणम् बुद्धिमान् योगी 'कविं पुराणम्" इत्यादि लक्षणों- इत्यादिलक्षणं तं परं पुरुषम् उपैति प्रतिपद्यते वाले उस दिव्य-चेतनात्मक परमपुरुषको प्राप्त दिव्यं द्योतनात्मकम् ॥१०॥ होता है ॥१०॥