पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२२०

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श्रीमद्भगवद्गीता पुनः अपि वक्ष्यमाणेन उपायेन प्रति- फिर भी भगवान आगे बताये जाने वाले उपायोंसे प्राप्त होने योग्य और वेदविदो वदन्ति' इत्यादि पित्सितस्य ब्रह्मणो बेदविद्वदनादिविशेषण- विशेषणोंद्वारा वर्णन किये जानेयोग्य ब्रह्मका प्रति- विशेष्यस्य अभिधानं करोति भगवान्--- पादन करते हैं- यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः । यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ॥ ११ ॥ यद् अक्षरं न क्षरति इति अक्षरम् अविनाशि 'हे गार्मि! ब्राह्मणलोग उसी इस अक्षरको वेदविदो वेदार्थज्ञा बदन्ति 'तद्वा एतदक्षरं गार्गि | वर्णन किया करते हैं इस श्रुतिके अनुसार, वेदके ब्राह्मणा अभिवदन्ति' (बृ० उ० ३।८।८ ) इति परम अर्थको जाननेवाले विद्वान् जिस अक्षरका अर्थात् जिसका कभी नाश न हो, ऐसे परमात्माका वह न श्रुतेः । सर्वविशेषनिवर्तकत्वेन अभिवदन्ति है, न सूक्ष्म है' इस प्रकार सब विशेषोंका 'अस्थूलमनणु' (बृ० उ०३ । ८।८ ) इत्यादि। निराकरण करके वर्णन किया करते हैं, किं च विशन्ति प्रविशन्ति सम्यग्दर्शनप्राप्ती तथा जिनकी आसक्ति नष्ट हो चुकी है ऐसे सत्यां यद् यतयो यतनशीलाः संन्यासिनो वीतराग, यनशील, संन्यासी, यथार्थ ज्ञानकी प्राप्ति वीतरागा विगतो रागो येभ्यः ते वीतरागा। हो जानेपर जिसमें प्रविष्ट होते हैं, यत् च अक्षरम् इच्छन्तो ज्ञातुम् इति वाक्य- एवं जिस अक्षरको जानना चाहनेवाले (साधक) शेषः । ब्रह्मचर्य गुरौ चरन्ति । गुरुकुलमें ब्रह्मचर्यव्रतका पालन किया करते हैं, तत् ते पदं तद् अक्षराख्यं पदं पदनीयं ते वह अक्षरनामक पद अर्थात् प्राप्त करने- तुभ्यं संग्रहेण संग्रहः संक्षेपः तेन संक्षेपेण योग्य स्थान मैं तुझे संग्रहले-संक्षेपसे बतलाता हूँ। प्रवक्ष्ये कथयिष्यामि ॥११॥ संग्रह संक्षेपको कहते हैं ॥११॥ स्थूल 'स यो ह वै तद्भगवन्मनुष्येषु प्रायणान्तमोकार- सत्यकामके यह पूछनेपर कि 'हे भगवन् । मभिध्यायीत कतमं वाच स तेन लोकं जयतीति ! मनुष्यों से वह जो कि मरणय॑न्त ओंकारका भली प्रकार ध्यान करता रहता है वह उस तस्मै स होवाच, एतदै सत्यकाम परं चापरं च साधनसे किस लोकको जीत लेता है ? पिप्पलाद ब्रह्म यदोंकारः' इति उपक्रम्य 'यः पुनरतं ऋषिने कहा कि हे सत्यकाम ! यह ओंकार ही निःसन्देह परब्रह्म है और यही अपर ब्रह्म भी है।' त्रिमात्रेणोमित्येतेनैवाक्षरेण परं पुरुषममिध्यायीत' इस प्रकार प्रसंग आरम्भ करके फिर जो कोई (प्र० उ० ५। १-२-५ ) इत्यादिना बचनेन, इस तीन मात्राधाले 'ओम्' इस अक्षरद्वारा परम पुरुषकी उपासना करता रहता है।' इत्यादि वचनोंसे (प्रश्नोपनिषद्- ),

  • 'ज्ञातुम्' शब्द मूल इलोकमें नहीं है, इसको भाष्यकारने यास्यशेष माना है ।