पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२३०

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नवमोऽध्यायः अष्टमे नाडीद्वारेण धारणायोगः सगुण आठवें अध्यायमें सुषुम्ना नाडीद्वारा धारणायोगका उक्तः । तस्य च फलम् अग्न्यचिरादिक्रमेण | अंगोसहित वर्णन किया है और उसका फल | अग्नि, ज्योति आदिकी प्राप्तिके क्रमसे कालान्तरमें कालान्तरे ब्रह्मप्राप्तिलक्षणम् एव अनावृत्तिरूपं ब्रह्म-प्राप्तिरूप और अपुनरावृत्तिरूप दिखलाया निर्दिष्टम् । गया है। तत्र अनेन एव प्रकारेण मोक्षप्राप्तिफलम् वहाँ ( यह शंका होती हैं कि क्या इस प्रकार अधिगम्यते न अन्यथा इति तदाशङ्का- साधन करनेसे ही मोक्ष-प्राप्तिरूप फल मिलता है अन्य व्याविवृत्सया- किसी प्रकारसे नहीं मिलता ? इस शंकाको निवृत्त श्रीभगवानुवाच---- करनेकी इच्छासे श्रीभगवान् बोले---- इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयचे । ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥ १॥ इदं ब्रह्मज्ञानं वक्ष्यमाणम् उक्तं च पूर्वेषु जो ब्रह्मज्ञान आगे कहा जायगा और जो कि पूर्वक अध्यायेषु तद् बुद्धौ संनिधीकृत्य इदम् इति अध्यायोंमें भी कहा जा चुका है, उसको बुद्धि के सामने रखकर यहाँ इदम्' शब्दका प्रयोग किया है। आह । तु-शब्दो विशेषनिर्धारणार्थः । 'तु' शब्द अन्यान्य ज्ञानोंसे इसे अलग करके विशेषतासे लक्ष्य करानेके लिये है। इदम् एव सम्यग्ज्ञानं साक्षाद् मोक्षप्राप्ति- यही यथार्थ ज्ञान साक्षात् मोक्षप्राप्तिका साधन साधनम् 'वासुदेवः सर्वमिति' 'आत्मैवेदं सर्वम्' है । जो कि सब कुछ वासुदेव ही है' 'आत्मा ही (बृ० उ० २।४।६) 'एकमेवाद्वितीयम् (छा ०३० इत्यादि श्रुति-स्मृतियोंसे दिखलाया गया है, ( इसके यह समस्त जगत् है' 'ब्रह्म अद्वितीय एक ही है' ६ ।।१) इत्यादिश्रुतिस्मृतिभ्यः। न अन्यत्। अतिरिक्त ) और कोई (मोक्षका साधन ) नहीं है। 'अथ येऽन्यथाऽतो विदुरन्यराजानस्ते क्षय्य- 'जो इससे विपरीत जानते हैं, वे अपने से भिन्न अपना खामी माननेवाले मनुष्य विनाशशील लोका भवन्ति' इत्यादिश्रुतिभ्यः च । लोकोंको प्राप्त होते हैं' इत्यादि श्रुतियोंसे भी यही सिद्ध होता है। ते तुभ्यं गुह्यतमं गोप्यतमं प्रवक्ष्यामि कथ- तुझ असूयारहित भक्तसे मैं यह अति यिष्यामि अनसूयवे असूयारहिताय । गोपनीय विषय कहूँगा। किं तत्, ज्ञानम्, किंविशिष्टं विज्ञानसहितम् वह क्या है ? ज्ञान । कैसा ज्ञान ? विज्ञानसहित अनुभवयुक्तम् । अर्थात् अनुभवसहित ज्ञान ।