पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२३१

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..........-.--..--..---:::::::::: शांकरभाष्य अध्याय यद् ज्ञानं ज्ञात्वा प्राप्य मोक्ष्यसे अशुभात् : जिल ज्ञानको जानकर अर्थात् पाकर तू संसारबन्धनात् ॥१॥ संसाररूप वन्धनसे मुक्त हो जायगा ॥ १॥ वह ज्ञान- ज्ञान राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् । प्रत्यक्षावगमं धर्म्य सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥ २ ॥ राजविद्या विद्यानां राजा दीप्त्यतिशयत्वात् । अतिशय प्रकाशयुक्त होनेके कारण समस्त दीप्यते हि इयम् अतिशयेन ब्रह्मविद्या विद्याओंका राजा है । ब्रह्मविद्या सब विद्याओंमें सर्वविद्यानाम् । अतिशय देदीप्यमान है यह प्रसिद्ध ही है। तथा राजगुह्यं गुह्यानां राजा । पवित्रं पावनम् तथा ( यह ज्ञान ) समस्त गुप्त रखनेयोग्य इदम् उत्तमं सर्वेषां पावनानां शुद्धिकारणम् इदं भावोंका भी राजा है । एवं यह बड़ा एवित्र और ब्रह्मज्ञानम् उत्कृष्टतमम् । अनेकजन्मसहस्र- उत्तम भी है, अर्थात् सम्पूर्ण पवित्र करनेवालोंको सञ्चितम् अपि धर्माधर्मादि समूलं कर्म क्षण- पवित्र करनेवाला यह ब्रह्मज्ञान सबसे उत्कृष्ट है । मात्राद् ममीकरोति यतः अतः किं तस्य जो अनेक सहस्र जन्मोंमें इक हुए पुण्य-पापादि पावनत्वं वक्तव्यम् । कोंको क्षणमात्रमें मूलसहित भस्म कर देता है उसकी पवित्रताका क्या कहना है ? किं च प्रत्यक्षावगमं प्रत्यक्षेण सुखादेः इव : साथ ही यह प्रत्यक्ष अनुभवमें अवगमो यस्य तत् प्रत्यक्षावगमम् । आनेवाला है, अर्थात् सुख आदिकी भाँति जिसका प्रत्यक्ष अनुभव हो सके, ऐसा है । अनेकगुणवतः अपि धर्मविरुद्धत्वं दृष्टं न अनेक गुणोंसे युक्त वस्तुका भी धर्मसे विरोध तथा आत्मज्ञानं धर्मविरोधि किन्तु धयं देखा जाता है परन्तु आत्मज्ञान उनकी तरह धर्माद् अनपेतम् । धर्मविरोधी नहीं है बल्कि धर्म्य-धर्ममय है अर्थात् धर्मसे युक्त है। एवम् अपि स्याद् दुःसंपाद्यम् इति अत आह ऐसा पदार्थ भी दुःसम्पाद्य ( प्राप्त करनेमें बड़ा सुसुखं कर्तुं यथा रत्नविवेकविज्ञानम् । | कठिन ) हो सकता है। इसलिये कहते हैं कि यह ज्ञान रनोंके विवेक-विज्ञानकी भाँति समझनेमें बड़ा सुगम है। तत्र अल्पायासानां कर्मणां सुखसंपाद्यानाम् परन्तु संसारमें अल्प परिश्रमसे सुखपूर्वक सम्पन्न होनेवाले कर्मोंका अल्पफल और कठिनतासे सम्पन्न अल्पफलत्वं दुष्कराणां च महाफलत्वं दृष्टम् होनेवाले कर्मोंका महान् फल देखा गया है, अतः इति इदं तु सुखसंपाद्यत्वात् फलक्षयाद् व्येति यह ज्ञान भी सुगमतासे सम्पन्न होनेवाला होनेके कारण अपने फलका क्षय होनेपर क्षीण हो इति प्राप्तम् अत आह- जायगा, ऐसी शंका प्रात होनेपर कहते हैं-