पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२३६ श्रीमद्भगवद्गीता सः अविकम्पेन अग्रचलितेन योगेन वह पुरुष पूर्ण ज्ञान की स्थिरतारूप निश्चल सम्यग्दर्शनस्थैर्यलक्षणेन युज्यते संबध्यते न योगसे युक्त हो जाता है, इस विषयमें (कुछ भी) अत्र संशयो न अस्मिन् अर्थे संशयः अस्ति ॥७॥ संशय नहीं है ||७|| कीदृशेन अविकम्पेन योगेन युज्यते इति किस प्रकारके अविचल योगसे युक्त हो जाता उच्यते- है ! सो कहा जाता है---- अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्व प्रवर्तते । इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ॥ अहं परं ब्रह्म वासुदेवाख्यं सर्वस्य जगतः मैं बासुदेव नामक परमब्रह्म समस्त जगतकी प्रभव उत्पत्तिः मत्त एव स्थितिनाशक्रिया- | उत्पत्तिका कारण हूँ, और मुझसे ही यह स्थिति, फलोपभोगलक्षणं विक्रियारूपं सर्व जगत् नाश, क्रिया और कर्मफलोपभगरूप विकारमय सारा प्रवर्तते इति एवं मत्वा भजन्ते सेवन्ते मां बुधा जगत् घुमाया जा रहा है। इस अभिप्रायको (अच्छी अवगततत्त्वार्था भावसमन्विता भावो भावना | प्रकार) लुमझकर भावसमन्वित--परमार्थतत्त्वकी परमार्थतत्त्वाभिनिवेशः तेन समन्विताः धारणासे युक्त हुए, बुद्धिमान्-तत्त्वज्ञानी पुरुष, मुझे संयुक्ता इत्यर्थः ॥८॥ भजते हैं अर्थात् मेरा चिन्तन किया करते हैं ॥८॥ तथा-- किंच. मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् । कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥ ६ ॥ मच्चित्ता मयि चित्तं येषां ते मञ्चित्ता मुझमें ही जिनका चित्त है वे मच्चित्त हैं तथा मुझमें ही जिनके चक्षु आदि इन्द्रियरूप प्राण लगे मगतप्राणा मां गताः प्राप्ताः चक्षुरादयः प्राणा रहते हैं-मुझमें ही जिन्होंने समस्त करणोंका येषां ते मद्गतप्राणा मयि उपसंहृतकरणा इत्यर्थः | उपसंहार कर दिया है वे मद्गतप्राण हैं अथवा जिन्होंने मेरे लिये ही अपना जीवन अर्पण कर दिया अथवा मगतप्राणा मद्तजीवना इति एतत् । है वे मद्गतप्राण हैं। बोधयन्तः अवगमयन्तः परस्परम् अन्योन्यं ऐसे मेरे भक्त आपसमें एक दूसरेको (मेरा तत्त्व ) समझाते हुए एवं ज्ञान, बल और सामर्थ्य आदि गुणोंसे कथयन्तो ज्ञानबलवीर्यादिधर्मैः विशिष्टं मां तुष्यन्ति युक्त मुझ परमेश्वरके स्वरूपका वर्णन करते हुए सदा चं परितोषम् उपयान्ति रमन्ति च रतिं च सन्तुष्ट रहते हैं अर्थात् सन्तोषको प्राप्त होते हैं और रमण करते हैं अर्थात् मानो कोई अपना अत्यन्त प्यारा प्राप्नुवन्ति प्रियसंगत्या इव ॥९॥ मिल गया हो उसी तरह रतिको प्राप्त होते हैं ॥९||