पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२७२

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श्रीमद्भगवद्गीता अमी हि युध्यमाना योद्धारः वा त्यो यह युद्ध करनेवाले योद्धा-स्वरूप देवगण, यानी सुरसंधा ये अत्र भूभारावताराय अवतीर्णा जो भूमिका भार उतारने के लिये यहाँ अवतीर्ण हुए हैं, वे मनुष्योंकी-सी आकृतिवाले वस्वादि वस्वादिदेवसंघा मनुष्यसंस्थानाः त्वां विशन्ति देव-समुदाय आपमें ( दाइ-दोड़कर ) प्रवेश कर प्रविशन्तो दृश्यन्ते । लत्र केचिद् भीताः पानालयः रहे हैं अर्थात प्रवेश करते हुए दिखलायी दे रहे हैं। उनमें से अन्य कोई-कोई तो भागनेमें असमर्थ सन्तो गुणन्ति स्तुवन्ति त्वाम् अन्धे पलायने होनेके कारण भयभीत होकर हाथ जोड़े हुए अपि अशक्ताः सन्तः। आपकी स्तुति कर रहे हैं। युद्धे प्रत्युपस्थिते उत्पातादिनिमित्तानि तथा महर्पियों और सिद्धोंके समुदाय युद्ध उपलक्ष्य स्वस्ति अस्तु जगत इति उक्त्वा आरम्भ होनेपर उत्पात आदि अशुभ चिह्नोंको देखकर 'संसारका कल्याण हो' ऐसा कहकर महर्षिसिद्धसंघा महर्षीणां सिद्धानां च संवाः अनेकों अर्थात् संपूर्ण स्तोत्रोंद्वारा आपकी स्तुति स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः संपूर्णाभिमा२१॥. कर रहे हैं ॥ २१ ॥

किं च अन्यत्- तथा और भी--- रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्विनौ मरुतश्रोष्मपाश्च । गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा वीक्षन्ते त्या विस्मिताश्चैव सर्वे ॥ २२ ॥ रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या रुद्रादवो जो रुद्र, आदित्य, वसु और साध्य आदि देव- गणा विश्वे अश्विनौ च देवो मरुतः च ऊष्मपाः | गण हैं, एवं जो विश्वेदेव, दोनों अश्विनीकुमार, वायु- च पितरो गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघा गन्धर्वा हाहा- देव और ऊष्मपा नामक पितृगण हैं तथा जो गन्धर्व, हहूप्रभृतयो यक्षाः कुबेरप्रभृतयः असुरा विरोचनप्रभृतयः सिद्धाः कपिलादयः तपा यक्ष, असुर और सिद्धोंके समुदाय हैं यानी हाहा-हू संघा गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसंघाः ते वीक्षन्ते आदि गन्धर्व, कुबेरादि यक्ष, विरोचनादि असुर पश्यन्ति त्या त्या विस्मिता विस्मयम् आफ्नाः | और कपिलादि सिद्ध इन सबके समुदाय हैं, वे सन्तः ते एव सर्वे ॥ २२॥ सभी आश्चर्ययुक्त हुए आपको देख रहे हैं ।। २२ ॥ | क्योंकि- यस्मात्- रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रं महाबाहो बहुबाहरुपादम् । बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालं दृष्ट्वा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम् ॥ २३ ॥