पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२९०

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२७४ श्रीमद्भगवद्गीता ARAN ये च अन्ये अपि त्यक्तसर्वैषणाः संन्यस्त- तथा दूसरे जो समस्त बासनाओंका त्याग करने- सर्वकर्माणो यथाविशेषितं ब्रह्म अक्षरं निरस्त- वाले, सर्व-कर्म-संन्यासी ( ज्ञानीजन ) उपर्युक्त विशेषणोंसे युक्त परम अक्षर, जो समस्त उपाधियोंसे सर्वोपाधित्वाद् अव्यक्तम् अकरणगोचरम् । यद् रहित होनेके कारण अव्यक्त है, ऐसे इन्द्रियादि करणों- हि लोके करणगोचरं तद् व्यक्तम् उच्यते से अतीत ब्रह्मकी उपासना किया करते हैं। संसारमें जो इन्द्रियादि करणोंसे जाननेमें आनेवाला पदार्थ है अञ्जेः धातोः तत्कर्मकत्वाद् इदं तु अक्षरं वह व्यक्त कहा जाता है क्योंकि 'अंज' धातुका अर्थ तद्विपरीतम्, शिष्टैः च उच्यमानः विशेषणैः इन्द्रियगोचर होना ही है और यह अक्षर उससे विपरीत अकरणगोचर हैं एवं महापुरुषोंद्वारा कहे हुए विशिष्टं तद् ये च अपि पर्युपासते । विशेषणोंसे युक्त हैं,ऐसे ब्रह्मकी जो उपासना करते हैं। तेषाम् उभयेषां मध्ये के योगवित्तमाः के उन दोनोंमें श्रेष्ठतर योगवेत्ता कौन हैं ? अर्थात् अतिशयेन योगविद इत्यर्थः ॥१॥ अधिकतासे योग जाननेवाले कौन हैं ? ॥ १ ॥ श्रीभगवानुवाच-- श्रीभगवान् बोले---- ये तु अक्षरोपासका सम्यग्दर्शिनो जो कामनाओंसे रहित पूर्णज्ञानी अक्षरब्रह्मके उपासक हैं उनको अभी रहने दो, उनके प्रति निवृत्तैषणाः ते तावत् तिष्ठन्तु तान् प्रति यद् जो कुछ कहना है वह आगे कहेंगे, परन्तु जो वक्तव्यं तद् उपरिष्टाद् वक्ष्यामः।येतु इतरे- दूसरे हैं- मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते । श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः ॥ २॥ मयि विश्वरूपे परमेश्वरे आवेश्य समाधाय जो भक्त मुझ विश्वरूप परमेश्वरमें मनको समाधिस्थ मनो ये भक्ताः सन्तः, मां सर्वयोगेश्वराणाम् करके सर्व योगेश्वरोंके अधीश्वर रागादि पञ्चक्लेश- अधीश्वरं सर्वशं विमुक्तरागादिक्लेशतिमिर- रूप अज्ञान-दृष्टिसे रहित मुझ सर्वज्ञ परमेश्वरकी पिछले दृष्टिम्, नित्ययुक्ता अतीतानन्तराध्यायान्तोक्त- श्लोकार्थन्यायेन सततयुक्ताः सन्त उपासते एकादश ) अध्यायके अन्तिम श्लोकके अर्थानुसार श्रद्धया परया प्रकृष्टया उपेताः, ते मे मम मता निरन्तर तत्पर हुए उत्तम श्रद्धासे युक्त होकर उपासना अभिप्रेता युक्ततमा इति । करते हैं, वे श्रेष्ठतम योगी हैं, यह मैं मानता हूँ। नैरन्तर्येण हि ते मञ्चित्ततया अहोरात्रम् क्योंकि वे लगातार मुझमें ही चित्त लगाकर अतिवाहयन्ति अतो युक्तं तान् प्रति युक्ततमा रात-दिन व्यतीत करते हैं, अतः उनको युक्ततम इति वक्तुम् ॥२॥ कहना उचित ही है ॥२॥