पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२९६

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२८० श्रीमद्भगवद्गीता केन साधम्र्येण स्तुतिः। पू०-कौन-सी समानताके कारण यह स्तुति की गयी है ? 'यदा सर्वे प्रमुच्यन्ते' (का० उ०६।१४) To-'जब ( इसके हृदयमें स्थित) समस्त इति सर्वकामप्रहाणाद् अमृतत्वम् उक्तं तत् कामनाएँ नष्ट हो जाती है' इस श्रुतिसे समस्त प्रसिद्धम् । कामाः च सर्वे श्रौतस्मात सर्वकर्मणां कामनाओंके नाशसे अमृतत्वकी प्राप्ति बतलायी गयी है, यह प्रसिद्ध है। समस्त श्रौत-स्मार्त-कर्मोके फलों- फलानि । तत्यागे च विदुषो ज्ञाननिष्ठस्य का नाम 'काम' है, उनके त्यागसे ज्ञाननिष्ठ विद्वान्- अनन्तरा एव शान्तिः इति । को तुरन्त ही शान्ति मिलती है। सर्वकामत्यागसामान्यम् अज्ञकर्मफल- अज्ञानीके कर्मफलत्यागमें भी सर्वकामनाओं- त्यागस्य अस्ति इति तत्सामान्यात सर्वकर्मफल- का त्याग है ही, अतः इस सर्व कामनाओं के त्याग- की समानताके कारण रुचि उत्पन्न करनेके लिये त्यागस्तुतिः इयं प्ररोचनार्था । यह सर्वकर्मफलत्यागकी स्तुति की गयी है। यथा अगस्त्येन ब्राह्मणेन समुद्रः पीत जैसे 'अगस्त्य ब्राह्मणने समुद्र पी लिया था' इति इदानीतना . अपि ब्राह्मणा ब्राह्मणत्व- | इसलिये आजकलके ब्राह्मणोंकी भी ब्राह्मणत्व- की समानताके कारण स्तुति की जाती है। एवं कर्मफलत्यागात् कर्मयोगस्य श्रेयः- इस प्रकार कर्मफलके त्यागसे कर्मयोगकी साधनत्वम् अभिहितम् ॥१२॥ कल्याणसाधनता बतलायी गयी है ॥१२॥ सामान्यात् स्तूयन्ते । अत्र च आत्मेश्वरभेदम् आश्रित्य विश्वरूपे यहाँ आत्मा और ईश्वरके भेदको स्वीकार करके ईश्वरे चेतःसमाधानलक्षणो योग उक्त ईश्वरार्थ विश्वरूप ईश्वरमें चित्तका समाधान करनारूप योग कहा है और ईश्वरके लिये कर्म करने आदिका भी कर्मानुष्ठानादि च । उपदेश किया है। अथैतदप्यशक्तोऽसि' इति अज्ञानकार्य- परन्तु 'अथैतदप्यशक्तोऽसि' इस कथनके द्वारा सूचनाद् न अभेददर्शिनः अक्षरोपासकस्य (कर्मयोगको) अज्ञानका कार्य सूचित करते हुए कर्मयोग उपपद्यते इति दर्शयति । तथा कर्म- | भगवान् यह दिखलाते हैं कि जो अव्यक्त अक्षरकी योगिनः अक्षरोपासनानुपपत्तिं दर्शयति उपासना करनेवाले अभेददर्शी हैं उनके लिये कर्म- योग सम्भव नहीं है । साथ ही कर्मयोगियों के लिये भगवान् । अक्षरकी उपासना असम्भव दिखलाते हैं। 'ते प्राप्नुवन्ति मामेव' इति अक्षरोपासकानां इसके सिवाय ( उन्होंने ) ते प्रामुवन्ति मामेव' कैवल्यप्राप्ती स्वातन्त्र्यम् उक्त्वा इतरेषां इस कथनसे अक्षरकी उपासना करनेवालोंके लिये मोक्षप्राप्तिमें स्वतन्त्रता बतलाकर तेपामहं समुद्धा पारतन्त्र्यम् ईश्वराधीनतां दर्शितवान् तेषामहं इस कथनसे दूसरोंके लिये परतन्त्रता अर्थात् समुद्धर्ता' इति । ईश्वराधीनता दिखलायी है।