पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/२९७

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२८१ यदि हि ईश्वरस्थ आत्मभृताः ते मता क्योंकि यदि वे (कर्मयोगी भी ) इश्वरके स्वरूप अभेददर्शित्वाद् अक्षररूपा एवं ते इति ही माने गये हैं तव तो अभेददर्शी होनेके कारण वे अक्षरखरूप ही हुए, फिर उनके लिये उद्धार भगवान् अजुलके अत्यन्त ही हितैषी हैं, इसलिये सेवकभाव परस्परविरुद्ध है इस कारण, प्रमाणद्वारा इसलिये जिन्होंने समस्त इच्छाओंका त्याग कर दिया है, ऐसे अक्षरोपासक यथार्थ ज्ञाननिष्ठ संन्यासियोंका जो साक्षात् मोक्षका कारणरूप | वर्णन करुगा, इस उद्देश्यसे भगवान् कहना आरम्भ द्वेष नहीं करता, समस्त भूतोंको आत्मारूपसे ही. तथा जो मित्रतासे युक्त है अर्थात् सबके साथ मित्र- शांकरभाष्य अध्याय १२ समुद्धरणकर्मवचनं तान् प्रति अपेशलं स्यात् ।। करनेका कथन असंगत होगा। यस्मात् च अर्जुनस्य अत्यन्तम् एव हितैषी भगवान् तस्य सम्यग्दर्शनानन्वितं कर्मयोग उसको सन्यज्ञानसे जो मिश्रित नहीं है, ऐसे भेद- दृष्टियुक्त केवल कर्मयोगका ही उपदेश करते हैं । भेदद्दष्टिमन्तम् एव उपदिशति । (ज्ञानकर्मके समुच्चयका नहीं) न च आत्मानम् ईश्वरं प्रमाणतो बुद्ध्वा कस्य- तथा (यह भी युक्तिसिद्ध है कि) ईश्वरभाव और भी, किसीका सेवक बनना नहीं चाहता । तस्माद् अक्षरोपासकानां सम्यग्दर्शन- निष्ठानां संन्यासिनां त्यक्तसर्वेवणानाम् 'अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्' इत्यादिधर्मपूर्ण साक्षाद् अमृतत्व- 'अद्वेष्टा सर्वभूतानाम् इत्यादि धर्मसमूह है उसका कारणं वक्ष्यामि इति प्रवर्तते--- करते हैं- अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च । निर्ममो निरहंकारः समदुःखसुखः क्षमी ॥ १३ ॥ अद्वेष्टा सर्वभूतानां न द्वेष्टा आत्मनो दुःखहेतुम् अपि न किंचिद् दृष्टि सर्वाणि भूतानि अपने लिये दुःख देनेवाले भी किसी प्राणी आत्मत्वेन हि पश्यति । देखता है। मैत्रो मित्रभावो मैत्री मित्रतया वर्तते इति मैत्रः । करुण एव च करुणा कृपा दुःखितेषु दया भावसे बर्तता है और करुणामय है-दीन-दुखियोंपर तद्वान् करुणः सर्वभूताभयप्रदः संन्यासी दया करना करुणा है, उससे युक्त है। अभिप्राय यह इत्यर्थः। निर्ममो ममप्रत्ययवर्जितो निरहंकारो निर्गताहंप्रत्ययः । समदुःखसुखः समे दुःखसुखे एवं सुख-दुःखमें सम है अर्थात् सुख और दुःए द्वेषरागयोः अप्रवर्तके यस स समदुःखसुखः। जिसके अन्तःकरणमें राग-द्वेष उत्पन्न नहीं कर सकते जो सब भूतोंमें द्वेषभावसे रहित है अर्थात् कि जो सब भूतोंको अभय देनेवाला संन्यासी है। तथा जो ममतासे रहित और अहंकारसे रहित है,