पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३०३

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Harre-pap Wom शांकरभाष्य अध्याय १३ इदम् इति सर्वनाम्ना उक्तं विशिष्टि 'इदम् इस सर्वनामसे कही हुई वस्तुको शरीरम् इति । 'शरीरम्' इस विशेषणसे स्पष्ट करते हैं । हे कौन्तेय क्षतत्राणात् क्षयात् क्षरणात् हे कुन्तीपुत्र ! शरीरको चोट आदिसे बचाया क्षेत्रवद् वा अस्मिन् कर्मफलनिवृत्तः क्षेत्रम् जाता है इसलिये, या यह शनैः-शनैः क्षीण-नष्ट होता रहता है इसलिये, अथवा क्षेत्रके समान इसमें इति । इतिशब्द एवंशब्दपदार्थका क्षेत्रम् इति कर्मफल प्राप्त होते हैं इसलिये, यह शरीर 'क्षेत्र एवम् अभिधीयते कथ्यते । है इस प्रकार कहा जाता है। यहाँ 'इति' शब्द "एवम् शब्दके अर्थमें है। एतत् शरीरं क्षेत्र यो वेत्ति विजानाति इस शरीररुप क्षेत्रको जो जानता है-चरणोंसे आपादतलमस्तकं ज्ञानेन विषयीकरोति लेकर मस्तकपर्यन्त ( इस शरीरको ) जो ज्ञानसे स्वाभाविकेन औपदेशिकेन वा वेदनेन विषयी- प्रत्यक्ष करता है अर्थात् खाभाविक या उपदेश- करोति विभागशः तं वेदितारं प्राहुः कथयन्ति द्वारा प्राप्त अनुभवसे विभागपूर्वक स्पष्ट जानता क्षेत्रज्ञ इति । है, उस जाननेवालेको क्षेत्रज्ञ' कहते हैं। इतिशब्द एवंशब्दपदार्थक एवं पूर्ववत् यहाँ भी इति शब्द पहलेकी भाँति 'एवम्' शब्दके अर्थमें ही है । अतः 'क्षेत्रज्ञ' ऐसा कहते क्षेत्रज्ञ इति एवम् आहुः । के, तद्विदः तौ हैं। कौन कहते हैं ? उनको जाननेवाले अर्थात् क्षेत्रक्षेत्रज्ञौ ये विदन्ति ते तद्विदः ॥१॥ उन क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ दोनोंको जो जानते हैं वे ज्ञानी पुरुष ( कहते हैं ) ॥१॥ एवं क्षेत्रक्षेत्रज्ञौ उक्तौ किम् एतावन्मात्रेण इस प्रकार कहे हुए क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ क्या ज्ञानेन ज्ञातव्यौ इति न इति उच्यते-- इतने ज्ञानसे ही जाने जा सकते हैं ? इसपर कहते हैं कि नहीं- क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत । क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम क्षेत्रमं यथोक्तलक्षणं च अपि मां परमेश्वरम् । तू समस्त क्षेत्रोंमें उपर्युक्त लक्षणोंसे युक्त क्षेत्रज्ञ भी, मुझ असंसारी परमेश्वरको ही जान । अर्थात् असंसारिणं विद्धि जानीहि सर्वक्षेत्रेषु या क्षेत्रज्ञो समस्त शरीरोंमें जो ब्रह्मासे लेकर स्तम्बपर्यन्त ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्तानेकक्षेत्रोपाधिप्रविभक्तः तं अनेक शरीररूप उपाधियोंसे विभक्त हुआ क्षेत्रज्ञ है, उसको समस्त उपाधि-भेदसे रहित एवं सत् निरस्तसर्वोपाधिभेदं सदसदादिशब्दप्रत्यया- और असत् आदि शब्द-प्रतीतिसे जाननेने न गोचरं विद्धि इति अभिप्रायः ।। आनेवाला ही समझ।