पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३१४

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२६८ श्रीमद्भगवद्गीता आत्महा स्वयं मूढः अन्यान् च व्यामोह- तथा वह आत्महत्यारा, शास्त्र के अर्थकी सम्प्रदाय- यति शास्त्रार्थसंप्रदायरहितत्वात् श्रुतहानिम् परम्परासे रहित होनेके कारण, श्रुतिविहित अर्थका त्याग और वेद-विरुद्ध अर्थकी कल्पना करके, स्वयं अश्रुतकल्पनां च कुर्वन् । मोहित हो रहा है और दूसरोंको भी मोहित करता है। तस्माद् असंप्रदायवित् सर्वशास्त्रविद् अपि सुतरां जो शास्त्रार्थकी परम्पराको जाननेवाला मूर्खवद् एव उपेक्षणीयः। नहीं है, वह समस्त शास्त्रोंका ज्ञाता भी हो तो भी मूखोंके समान उपेक्षणीय ही है। यत् तु उक्तम् ईश्वरस्य क्षेत्रज्ञैकत्वे संसारित्वं और जो यह कहा था कि ईश्वरकी क्षेत्रज्ञके साथ एकता माननेसे तो ईश्वरमें संसारीपन आ जाता है प्रामोति क्षेत्रज्ञानां च ईश्वरैकत्वे संसारिणः और क्षेत्रज्ञोंकी ईश्वरके साथ एकता माननेसे कोई अभावात् संसाराभावप्रसङ्ग इति । एतौ दोषौ संसारी न रहने के कारण संसारके अभावका प्रसंग आ जाता है, सो विद्या और अविद्याकी विलक्षणता- प्रत्युक्तौ विद्याविद्ययोः वैलक्षण्याभ्युपगमाद् के प्रतिपादनसे इन दोनों दोषोंका ही परिहार कर इति । दिया गया। कथम् । अविद्यापरिकल्पितदोषेण तद्विषयं वस्तु उ०-'अविद्याद्वारा कल्पित किये हुए दोषसे तद्विषयक पारमार्थिक(असली)वस्तु दूषित नहीं होती' पारमार्थिकं न दुष्यति इति । तथा च दृष्टान्तो इस कथनसे पहली शंकाका निराकरण किया गया और दर्शितो मरीच्यम्भसा उपरदेशो न पतीक्रियते वैसे ही यह दृष्टान्त भी दिखलाया कि मृगतृष्णिकाके | जलसे ऊसर भूमि पंकयुक्त नहीं की जा सकती। इति । संसारिणः अभावात् संसाराभावप्रसङ्ग- | तथा संसारीका अभाव होनेसे संसारके अभावके दोषः अपि संसारसंसारिणोः अविद्याकल्पि- प्रसंगका जो दोष बतलाया था, उसका भी, संसार- संसारित्वकी अविद्याकल्पित उपपत्तिको स्वीकार तत्वोपपत्या प्रत्युक्तः। करके निराकरण कर दिया गया । ननु अविद्यावत्त्वम् एव क्षेत्रज्ञस्य संसारित्व- पू०-क्षेत्रज्ञका अविद्यायुक्त होना ही तो संसा- दोषः तत्कृतं च दुःखित्वादि प्रत्यक्षम् रित्वरूप दोष है, क्योंकि उससे होनेवाले दुःखित्व उपलभ्यते । आदि दोष प्रत्यक्ष देखे जाते हैं। न, ज्ञेयस्य क्षेत्रधर्मत्वाद् ज्ञातुः क्षेत्रज्ञस्य उ०-यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि जो कुछ ज्ञेय है—जाननेमें आता है, वह सब क्षेत्रका तत्कृतदोषानुपपत्तेः। ही धर्म है, इसलिये उसके किये हुए दोष ज्ञाता क्षेत्रके नहीं हो सकते।