पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३१५

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AAREERROPEHARESTINATEDAASसमाजverayersramme ............... ..................................... -....----- ----.......... शांकरभाष्य अध्याय १३ यावत्किचित् क्षेत्रज्ञस्य दोषजातम् अविद्य- तू क्षेत्रज्ञपर वास्तवमें बिना हुए ही जो कुछ मानम् आसञ्जयसि तस्य ज्ञेयत्वोपपत्तेः क्षेत्र-क्षेत्रके ही धर्म हैं, क्षेत्रके नहीं। उनसे क्षेत्रज्ञ भी दोष लाद रहा है, वे सब ज्ञेय होनेके कारण धर्मत्वम् एव न क्षेत्रज्ञधर्मत्वम् । न च तेन ( आत्मा ) दृषित नहीं हो सकता, क्योंकि शेयके क्षेत्रत्रो दुष्यति ज्ञेयेन ज्ञातुः संसर्गानुपपत्तेः साथ ज्ञाताका संसर्ग नहीं हो सकता है यदि उनका संसर्ग मान लिया जाय तो (ज्ञेयका ) ज्ञेयत्व ही यदि हि संसर्गः स्यात् ज्ञेयत्त्वम् एव न उपपद्येता सिद्ध नहीं हो सकता। यदि आत्मनो धर्मः अविद्यावत्वं अभिप्राय यह है कि यदि अविद्यायुक्त होना और दुखी होना आदि आत्माके धर्म हैं तो वे दु:खित्वादि च कथं भोः प्रत्यक्षम् उपलभ्यते । प्रत्यक्ष कैसे दीखते हैं ? और वे क्षेत्रज्ञके धर्म हो भी कथं वा क्षेत्रज्ञधर्मः । ज्ञेयं च सर्व क्षेत्रं ज्ञाता कैसे सकते हैं ? क्योंकि जो कुछ भी ज्ञेय वस्तु है वह सब क्षेत्र है और क्षेत्रज्ञ ज्ञाता है, ऐसा सिद्धान्त एव क्षेत्रज्ञ इति अवधारिते अविद्यादुखित्वादेः स्थापित किये जानेपर फिर अविद्यायुक्त होना और क्षेत्रज्ञधर्मत्वं तस्य च प्रत्यक्षोपलभ्यत्वम् इति दुखी होना आदि दोषोंको क्षेत्रज्ञके धर्म बतलाना और उनकी प्रत्यक्ष उपलब्धि भी मानना, यह सब अज्ञान- विरुद्धम् उच्यते अविद्यामानावष्टम्भात् केवलम् । मात्रके आश्रयसे केवल विरुद्ध प्रलाप करना है । अत्र आह सा अविद्या कस्य इति । पू०-वह अविद्या किसमें है ? यस्य दृश्यते तस्य एव । उ-जिसमें दीखती है उसीमें। कस्य दृश्यते इति । पू०-किसमें दीखती है ? अत्र उच्यते अविद्या कस्य दृश्यते इति उ०-'अविद्या किसमें दीखती है—यह प्रश्न प्रश्नो निरर्थकः। ही निरर्थक है। कथम् १ पू०-किस प्रकार दृश्यते चेद् अविद्या तद्वन्तम् अपि पश्यसि । उ०-यदि अविद्या दीखती है तो उससे जो युक्त है उसको भी तू अवश्य देखता ही होगा ? न च तद्वति उपलभ्यमाने सा कस्य इति फिर अविद्यावान्की उपलब्धि हो जानेपर वह प्रश्नों युक्तः । न हि गोमति उपलभ्यमाने अविद्या किसमें है, यह पूछना ठीक नहीं है। क्योंकि गौवालेको देख लेने पर 'यह गौ किसकी गावः कस्य इति प्रश्नः अर्थवान् भवेत् । है ?' यह पूछना सार्थक नहीं हो सकता। ननु विषमो दृष्टान्तो गवां तद्वतः च पू०-तुम्हारा यह दृष्टान्त विषम है। गौ और उसका खामी तो प्रत्यक्ष होनेके कारण उनका प्रत्यक्षवाद संवन्धः अपि प्रत्यक्ष इति प्रश्नो सम्बन्ध भी प्रत्यक्ष है इसलिये ( उनके सम्बन्धके निरर्थका, न तथा अविद्या तद्वान् च प्रत्यक्षौ विषयमें) प्रश्न निरर्थक है, परन्तु उनकी भाँति अविद्यावान् और अविद्या तो प्रत्यक्ष नहीं हैं, यता प्रश्नो निरर्थकः स्यात् । जिससे कि यह प्रश्न निरर्थक माना जाय ?