पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३१८

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३०२ श्रीमद्भगवद्गीता यद् निर्दिष्टम् इदं शरीरम् इति तत् जिसका पहले 'इदं शरीरम्' इत्यादि (वाक्य)से वर्णन किया गया है, यहाँ 'तत्' शब्दसे उसीका तच्छब्देन परामृशति । संकेत करते हैं। यत् च इदं निर्दिष्टं क्षेत्रं तद् यादृग् यादृशं यह जो पूर्वोक्त क्षेत्र है वह जैसा है अर्थात् स्वकीयैः धर्मः । चशब्दः समुच्चयार्थः अपने धर्मों के कारण वह जिस प्रकारका है तथा यद्विकारि यो विकारः अस्य तद् यद्विकारि जैसे विकारोंवाला है और जिस कारणसे जो कार्य यतो यस्मात् च यत् कार्यम् उत्पद्यते इति उत्पन्न होता है--यहाँ 'च' शब्द समुच्चयके लिये वाक्यशेषः। है; और 'कार्य उत्पन्न होता है' यह वाक्यशेष है। स च यः क्षेत्रज्ञो निर्दिष्टः स यत्प्रभावो तथा जिसे क्षेत्रज्ञ कहा गया है वह भी जिस ये प्रभाषा उपाधिकृताः शक्तयो यस्य स प्रभाववाला अर्थात् जिन-जिन उपाधिकृत शक्तियों- यत्प्रभावः च । तत् क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः याथात्म्यं वाला है, उन क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ. दोनोंका उपयुक्त यथाविशेषितं समासेन संक्षेपेण मे मम वाक्यतः विशेषणोंसे युक्त यथार्थ स्वरूप तू मुझसे संक्षेपसे शृणु श्रुत्वा अवधारय इत्यर्थः ॥३॥ सुन अर्थात् सुनकर निश्चय कर ॥३॥ तत् क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः याथात्म्यं विवक्षितं श्रोताकी बुद्धिमें रुचि उत्पन्न करनेके लिये, उस कहे जानेवाले क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके यथार्थ स्वरूपकी स्तौति श्रोतृबुद्धिप्ररोचनार्थम् । | स्तुति करते हैं- ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक् । ब्रह्मसूत्रपदेश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितैः ॥ ४॥ ऋषिभिः वसिष्ठादिभिः बहुधा बहुप्रकारं गीतं | ( यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञका तत्त्व ) वशिष्टादि कथितम्, छन्दोभिः छन्दांसि ऋगादीनि तैः ऋषियोंद्वारा बहुत प्रकारसे कहा गया है और छन्दोभिः विविधैः नानाप्रकारैः पृथग् विवेकतो | ऋग्वेदादि नाना प्रकारके श्रुतिवाक्योंद्वारा भी पृथक् गीतम् । पृथक्-विवेचनपूर्वक कहा गया है। किं च ब्रह्मसूत्रपदैः च एव, ब्रह्मणः सूचकानि तथा संशयरहित निश्चित ज्ञान उत्पन्न करनेवाले, वाक्यानि ब्रह्मसूत्राणि तैः पद्यते गम्यते ज्ञायते | विनिश्चित और युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्रके पदोंसे भी ब्रह्म इति तानि पदानि उच्यन्ते । तैः एव च | कहा गया है । जो वाक्य ब्रह्मके सूचक हैं उनका क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोः याथात्म्यं गीतम् इति अनुवर्तते । नाम 'ब्रह्मसूत्र' है, उनके द्वारा ब्रह्म पाया जाता है- 'आत्मेत्येवोपासीत' (बृ०उ०१४१७) इत्यादिभिः | जाना जाता है, इसलिये उनको 'पद' कहते हैं, हि ब्रह्मसूत्रपदैः आत्मा ज्ञायते । हेतुमद्भिः | उनसे भी क्षेत्र और क्षेत्रज्ञका तत्त्व कहा गया है। | क्योंकि 'केवल आत्मा ही सब कुछ है, ऐसी युक्तियुक्तः विनिश्चितैः न संशयरूपैः निश्चित- उपासना करनी चाहिये' इत्यादि ब्रह्मसूचक पदों- प्रत्ययोत्पादकैः इत्यर्थः ॥४॥ से ही आत्मा जाना जाता है ॥४॥ saidwene::