पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३२१

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सभाला TownsymuvMMANI Am ww शांकरभाष्य अध्याय १३ क्षेत्रोत्रक्ष्यमाणविशेषणो यस संप्रमावस्या जो आगे कहे जानेवाले विशेषणोंसे युक्त क्षेत्रज्ञ क्षेत्रज्ञस परिज्ञानाद् अमृतत्वं भवति तं ज्ञेयं है, जिस क्षेत्रको प्रभावसहित जान लेने से मनुष्य अन्तरूप हो जाता है, उसको भगवान् स्वयं यत्तत्प्रवक्ष्यामि इत्यादिना सविशेष स्वयम् एन आगे चलकर 'ज्ञेयं यत्तत्प्रवक्यामि' इत्यादि वचनों- वक्ष्यति भगवान् । से विशेषणोंके सहित कहेंगे। अधुना तु तज्ज्ञानसाधनगणम् अमानित्वादि यहाँ पहले उस (क्षेत्रज्ञ) के जाननेका उपायरूप जो अमानित्व आदि साधन-समुदाय है, जिसके होनेसे लक्षणं यस्मिन्न सति तज्ज्ञेयविज्ञाने योग्यः उस ज्ञेयको जानने के लिये मनुष्य योग्य अधिकारी बन जाता है, जिसके परायण हुआ संन्यासी अधिकृतो भवति यत्परः संन्यासी ज्ञाननिष्ठ ज्ञाननिष्ठ कहा जाता है और जो ज्ञानका साधन उच्यते, तम् अमानित्वादिगणं ज्ञानसाधनबाद होनेके कारण ज्ञान नामसे पुकारा जाता है, उस अमानित्वादि गुग-समुदायका भगवान् विधान ज्ञानशब्दवाच्यं विदधाति भगवान्- अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥ ७॥ अमानित्वं मानिनो भावो मानित्वम् । अमानित्व-मानीका भाव अर्थात् अपना बड़प्पन प्रकट करना जो मानित्व है, उसका आत्मनः श्लाघनं तदभावः अमानित्वम् । अभाव अमानिल कहलाता है। अदम्भित्वं स्वधर्मप्रकटीकरण दम्मित्वं अदम्भित्य--अपने धर्मको प्रकट करना दम्भित्व तदभावः अदम्भित्वम् । है, उसका अभाव अदम्भित्ल कहा जाता है। अहिंसा अहिंसनं प्राणिनाम् अपीडनम् । अहिंसा--हिंसा न करना अर्थात् प्राणियोंको कष्ट न देना । क्षमा-दृसरोंका अपने प्रति अपराध क्षान्तिः परापराधप्राप्तौ अविक्रिया । आर्जवम् देखकर भी विकाररहित रहना। आर्जव-~-सरलता, ऋजुभावो अवक्रत्वम् । अकुटिलता। आचार्योपासनं मोक्षसाधनोपदेष्टुः आचार्यस्य आचार्यकी उपासना-----मोक्ष-साधनका उपदेश करनेवाले गुरुका शुश्रूषा आदि प्रयोगोंसे सेवन शुश्रूषादिप्रयोगेण सेवनम् । शौचं कायमलानां मृजलाभ्यां प्रक्षालनम् शौच-शारीरिक मलोंको मिट्टी और जल अन्तः च मनसः प्रतिपक्षमावनया रागादि-आदिसे साफ करना और अन्तःकरणके राग-द्वेष आदि मलोंको प्रतिपक्ष-भावनासे* दूर करना । मलानाम् अपनयनं शौचम् ।

    • जिस दोषको दूर करना हो उसके विरोधी गुणकी भावना करनेका नाम 'प्रतिपक्ष-भावना है।

करना।