पृष्ठ:श्रीमद्‌भगवद्‌गीता.pdf/३२५

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10. MeriATNA शांकरभाष्य अध्याय १३ अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम् आत्मादिविषयं ज्ञानम् अध्यात्मज्ञाननियन्त्र----आत्मादिविषयक ज्ञान- अध्यात्मज्ञानं तस्मिन् नित्यभायो नित्यत्वम् । का नाम अध्यात्मज्ञान है, उसमें नित्यस्थिति । अमानित्वादीनां ज्ञानसाधनानां भावना- तत्त्वज्ञानके अर्थकी आलोचना अर्थात् अमा- परिपाकनिमित्तं तत्वज्ञानं तस्य अर्थों मोक्षः निस्वादि ज्ञान साधनोंकी परिपक्क भावनासे उत्पन्न संसारोपरमः तस्य आलोचनं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्, होनेवाला जो तरवज्ञान है उसका अर्थ जो संसारकी उपरतिरूप मोक्ष है, उसकी आलोचना । क्योंकि तत्त्वज्ञानफलालोचने हि तत्साधनानुष्ठाने तत्त्वज्ञानके फलकी आलोचना करनेसे ही उसके प्रवृत्तिः स्याद् इति । साधनों में प्रवृत्ति होगी। एतद् अमानित्वादितत्त्वज्ञानार्थदर्शनान्तम् 'अमानित्व से लेकर तत्त्वज्ञानके अर्थकी आलो- चनापर्यन्त कहा हुआ समन्त साधनसमुदाय ज्ञानका उक्तं ज्ञानम् इति प्रोक्तं ज्ञानार्थत्वात् । साधन होने के कारण 'ज्ञान' इस नामसे कहा गया हैं। अज्ञानं यद् अतः अस्माद् यथोक्ताद् अन्यथा इससे अर्थात् उपर्युक्त ज्ञानसाधनोंके समुदाय- से विपरीत जो मानित्य, दम्भिय, हिंसा, क्षमा- विपर्ययेण मानित्वं दम्मित्वं हिंसा अक्षान्तिः का अभाव, कुटिलता इत्यादि अवगुणसमुदाय अनार्जवम् इत्यादि अज्ञानं विज्ञेयं परिहरणाय है वह संसारमें प्रवृत्त करनेका हेतु होनेसे उसे त्याग करनेके लिये अज्ञान संसारप्रवृत्तिकारणत्वाद् इति ॥ ११॥ चाहिये ॥ ११ ॥ समझना यथोक्तेन ज्ञानेन ज्ञातव्यं किम् इति उपर्युक्त ज्ञानद्वारा जाननेयोग्य क्या है ? इस आकाङ्क्षायाम् आह ज्ञेयं यत् तद् इत्यादि। आकांक्षापर 'ज्ञेयं यत्तत्' इत्यादि श्लोक कहते हैं- ननु यमा नियमाः च अमानित्वादयो न पू०-अमानित्व आदि गुण तो यम और नियम हैं, उनसे ज्ञेय वस्तु नहीं जानी जा सकती। तैः ज्ञेयं ज्ञायते । न हि अमानित्वादि कस्यचिद् क्योंकि अमानित्यादि सद्गुण किसी वस्तुके ज्ञापक वस्तुनः परिच्छेदकं दृष्टम् । सर्वत्र एव च सद्- नहीं देखे गये हैं। सभी जगह यह देखा जाता है विषयं ज्ञानं तद् एव तस्य ज्ञेयस्य परिच्छेदक कि जो ज्ञान जिस वस्तुको विषय करनेवाला होता है वही उसका ज्ञापक होता है, अन्य वस्तुविषयक दृश्यते । न हि अन्यविषयेण ज्ञानेन अन्यद् ज्ञानसे अन्य वस्तु नहीं जानी जाती । जैसे उपलभ्यते । यथा घटविषयेण ज्ञानेन अग्नि घटविषयक ज्ञानसे अग्नि नहीं जाना जाता । न एष दोषो ज्ञाननिमित्तत्वाद् ज्ञानम् उ०-यह दोष नहीं है। क्योंकि हम पहले ही कह चुके हैं कि यह अमानित्वादि सद्गुण ज्ञानके उच्यते इति हि अबोचाम । ज्ञानसहकारिकारण- साधन होनेसे और उसके सहकारी कारण होनेसे 'ज्ञान' नामसे कहे गये हैं- त्वात् च-